हिंदू कोई धार्मिक संप्रदाय नहीं है बल्कि संप्रदायों का समूह है और कोई भी इसका प्रमुख नहीं है। तथाकथित शंकराचार्य विश्व के सर्वाधिक अमानवीय विचार अर्थात ब्राह्मण संप्रदाय के प्रमुख हैं हिंदुओं के नहीं। हिंदू में 90% लोग बौद्ध, जैन, कबीरपंथी और रैदासपंथी हैं।
हिंदू उन सभी धार्मिक संप्रदाय के समूह को कहा जाता है जिनका उदय भारत में हुआ है, इसमें सबसे प्राचीन संप्रदाय बौद्ध, आजीवक और जैन हैं। उसके बाद अमानवीयता से भरपूर वैदिक ब्राह्मण संप्रदाय आया है। आधुनिक ब्राह्मण संप्रदाय तो मुगल काल के बाद विकसित हुआ है। आधुनिक ब्राह्मण संप्रदाय का एक ही उद्देश्य है किसी भी प्रकार सामाजिक, धार्मिक एवं लोक परंपराओं और रीति रिवाजों को तोड़ मरोड़कर कर अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना और ब्राह्मणों को अन्य लोगों से श्रेष्ठ स्थापित करना। (Hindu is not a religion but a group of religious sects)
ब्राह्मण संप्रदाय को मानने वालों की संख्या सिर्फ तीन प्रतिशत है। भारतीय धार्मिक संप्रदायों का सही वर्गीकरण करने की जरूरत है और यहां कोई भी शंकराचार्य हिंदुओं का धार्मिक प्रमुख नहीं है बल्कि अपने ब्राह्मण संप्रदाय के धार्मिक प्रमुख हैं अर्थात साढे तीन परसेंट लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
ब्राह्मण संप्रदाय और उसके शंकराचार्य अमानवीय और अनैतिक विचार पर खड़े हैं। ब्राह्मण संप्रदाय के लोगों का आदर्श ग्रंथ मनुस्मृति है और यह लोग खुद को श्रेष्ठ और बाकी लोगों को नीचा मानते हैं।
इसमें सभी कुछ जन्म से तय होता है लेकिन जन्म के आधार पर हो रहे भेदभाव की बात पर फंस जाने पर यह लोग कहते हैं कि सबकुछ कर्म से है और इस पर हमारा जवाब है कि पुजारी का कर्म भी कोई श्रेष्ठ कर्म नहीं है कोई भी कर्म श्रेष्ठ और निकृष्ट नहीं होता। बल्कि पुजारी बिना काम के धन लेता है इसलिए उसके कर्म को श्रेष्ठ मानने का कोई औचित्य नहीं है बल्कि उसे जनता को मूर्ख बनाकर गरीब, अबोध, निश्चल मन के लोगों के धन को लूटने वाला माना जा सकता है।
ब्राह्मण लोग और उनके विचार दुनिया में मानवता के सबसे बड़े हत्यारे हैं। इस विचार ने मनुष्यों के साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया है। ब्राह्मण पुरोहितों ने किसी को शूद्र और किसी को अछूत बनाकर मनुष्य को उसकी मूलभूत हकों से वंचित रखा है। (Hindu is not a religion but a group of religious sects)
कोई भी ऐसा व्यक्ति जो मनुस्मृति और अन्य ब्राह्मण ग्रंथों पर विश्वास रखने का दावा करता है वह सजा के काबिल है। सभी ब्राह्मण ग्रंथों का एक ही उद्देश्य है कैसे समाज में ब्राह्मण पंडा पुरोहितों को ऊंचा रखा जाए और बाकी समाज को नीचे घोषित कर दिया जाए।

शंकराचार्य के विचार उनको अपराधी घोषित करने के लिए काफी हैं। आप YouTube पर शंकराचार्य के विचार सुनकर और ब्राह्मण ग्रंथों को पढ़कर इनकी अमानवीय सोच को जान सकते हैं।
दुख की बात है कि समाज को खाई में धकेलना वाले, समाज में बंटवारा करने वाले, समाज के बड़े वर्ग को अछूत बनाकर उनके साथ जानवरों से बदतर सुलूक करने वालों को आज भी कोई अपराध बोध नहीं है बल्कि इस परंपरा को आगे बढ़ाने की चाह है।
भारतीय कानून निर्माताओं को उनके साथ सख़्त से पेश आना चाहिए और यदि कानून निर्माता इस बात को लेकर सजग नहीं होते हैं तो जिन वर्गों के खिलाफ ब्राह्मण साहित्य और शंकराचार्य लोग बोल रहे हैं उन वर्गों को आगे जाकर सत्ता अपने हाथ में लेकर सभी अमानवीय कृत्य करने वाले लोगों को कानून के दायरे में लाकर कटघरे में खड़ा कर उचित सजा देनी चाहिए।

मनुस्मृति को ऐन केन प्रकारेण से सही बताने वाले, कभी उसे कर्म के आधार पर और कभी उसे जन्म के आधार पर सही बताने वाले, विभिन्न मनुवादी ब्राह्मण ग्रंथों को सही बताने वालों के लिए उचित सुधार गृह बनाकर उनका उपचार किया जाना चाहिए। (Hindu is not a religion but a group of religious sects)
मानव को मानव न मानने वाले, ब्राह्मण ग्रंथों में विश्वास करने वाले लोग मानसिक बीमार लोग हैं जो अवसर मिलने पर कभी भी पुरानी अमानवीय व्यवस्था को स्थापित कर सकते हैं इसलिए इन अपराधियों का कटघरे में खड़ा करना और इनका उचित उपचार करना बहुत जरूरी है।
लेखक – संतोष शाक्य, सामाजिक चिंतक, स्वतंत्र विचारक एवं प्रतिष्ठित पत्रकार
यह लेखक के निजी विचार है। लेखक एक प्रख्यात सामाजिक चिंतक, स्वतंत्र विचारक हैं। लेखक इंडस न्यूज़ टीवी के सह-संपादक के साथ साथ उत्तर प्रदेश राज्य के प्रमुख भी हैं।
यह भी पढ़ें: ईश्वर, धर्म और अध्यात्म ब्राह्मण-पंडा-पुरोहितों के लिए सामाजिक व्यवस्था पर कब्ज़ा करने के औजार मात्र हैं…
यह भी पढ़ें: ब्राह्मणवाद में डूबी कृषक, पशुपालक जातियों ने सामाजिक न्याय की हत्या की : संतोष शाक्य
यह भी पढ़ें: बौद्ध भिक्षु अनागारिक धम्मपाल के कारण विश्व धर्म संसद में बोल पाए विवेकानंद
यह भी पढ़ें: बौद्ध भिक्षु अनागारिक धम्मपाल के कारण विश्व धर्म संसद में बोल पाए विवेकानंद