रिपोर्ट: इरशाद रज़ा, जिला संवाददाता,बरेली।
मोहल्ला कंघी टोला की नूरी मस्जिद के इमाम, मौलाना बिलाल हुसैन ने जुमा की नमाज़ से क़ब्ल अपने खिताब में एक निहायत अहम और बसीरत अफरोज़ नुक्ता बयान किया। उन्होंने कहा कि जब कोई शख़्स बीमार होता है तो वह अपने बेहतरीन इलाज के लिए माहिर और तजुर्बेकार तबीब के पास जाता है ताकि वह उसकी बीमारी की सही तश्खीस करके मुनासिब इलाज तजवीज़ करे। इसी तरह जब कोई शख़्स किसी क़ानूनी मसले या मुक़दमे में उलझ जाता है तो मशवरा देने वाले बहुत मिल जाते हैं, मगर वह अपनी रिहाई और कामयाबी के लिए किसी माहिर व मोअ्तबर वकील के पास जाता है ताकि वह उसके मुक़दमे को दलाइल व बराहीन के साथ जज के सामने पेश करे और इंसाफ़ दिला सके।
इन तम्सीलात को बयान करने के बाद मौलाना बिलाल हुसैन ने निहायत हकीमानह अंदाज़ में कहा कि जब अपनी शख़्सी हिफ़ाज़त और दुनियावी मामलात में इंसान बेहतरीन से बेहतरीन रास्ता अपनाने की कोशिश करता है, तो दीन के मामले में क्यों ग़फलत बरती जाती है? जब दीन को समझने और उस पर अमल करने की बात आती है तो क्या यह ज़रूरी नहीं कि हम इस बारे में भी तहक़ीक़ व जुस्तुजू करें कि हम दीन किससे हासिल कर रहे हैं?
मौलाना बिलाल ने कहा कि दीन की तालीम हासिल करते वक़्त यह देखना लाज़िमी है कि जिस पीर या आलिम से हम सीख रहे हैं, वह खुद कुरआन व सुन्नत के मुताबिक चल रहा है या नहीं? क्यों कि आजकल कुछ जाहिल लोग महज़ फ़क़्र व दरवेशी का लिबादा ओढ़ कर नाजायज़ और हराम उमूर में मुलव्विस हो रहे हैं, और जब उनसे सवाल किया जाए तो “हमारी लाइन अलग है” जैसा बे-बुनियाद उज़्र पेश करते हैं।
मौलाना बिलाल हुसैन ने इसकी मज़ीद वज़ाहत करते हुए कहा कि हक़ीक़ी मजज़ूब और फ़क़ीरों की शान यह होती है कि वह अल्लाह की राह में इस क़दर डूब चुके होते हैं कि उन्हें खाने और पीने की परवाह भी नहीं होती। जबकि आजकल बहुत से नाम-निहाद फ़क़ीर और दरवेश ऐसे नज़र आते हैं जो सिर्फ़ फ़क़ीरी का लिबादा ओढ़े होते हैं, मगर दुनियावी मामलात में इन्तिहाई चालाक और होशियार नज़र आते हैं। जब हराम कामों में मुलव्विस होते हैं तो पूरी अक़्ल व फ़हम का मुज़ाहिरा करते हैं, मगर जब दीन की ख़िदमत और इल्म की बात आती है तो फ़ौरन फ़क़ीरी लाइन का बहाना बना कर अपनी जान छुड़ा लेते हैं।
मौलाना बिलाल हुसैन ने अपने खिताब के इख़्तिताम में मुसलमानों को ताक़ीद करते हुए कहा कि ऐसे गुमराह कुन अनासिर से बचें, जो दीन के नाम पर बिदअत, खुराफ़ात और नाजायज़ उमूर को फरोग़ दे रहे हैं। उन्होंने फ़रमाया कि दीन की असल तालीम कुरआन व सुन्नत में मज़मर है, इसलिए मसलक ए आला हज़रत का दामन सख्ती के साथ थामे रहे और जो कोई भी इससे मुत्तासादिम अमल करे, वह क़ाबिले क़ुबूल नहीं हो सकता।
इस मौके पर जावेद खान, परवेज़ खान, अजमल नूरी, जुनैद खान हारून बेग, रफत अली खां, इरशाद मियां, समीर बेग, नदीम खान, आसिफ खान, शानू, अकमल, हस्सान खान, शोएब आदि मौजूद रहे।