-अमिता शीरीं
कहानी खुद को दोहराती है. पति दारू पीकर मारता है, दारू उतरने पर प्यार जताता है. पत्नी हर बार अपमानित होती है और अपने ज़ख़्म छुपाते हुए उम्मीद करती है, पति अब सुधर जायेगा…घरेलू हिंसा का यह किस्सा अनवरत चलता रहता है फ्रेम दर फ्रेम! (Darlings A Film on Domestic Violence)
कहानी में मोड़ आता है, पत्नी की बच्ची सीढ़ियों से ढकेल दी जाने के बाद पेट में ही मर जाती है, यानी कि गर्भपात हो जाता है. तन और मन की घायल पत्नी (आलिया भट्ट) अपनी मां (शेफाली शाह) के साथ मिल कर उससे बदला लेने की कोशिश करती हैं. कुछ-कुछ ‘मर्द’ की तरह ही. लेकिन अंत में बिल्कुल उसकी तरह नहीं बन पाती. मर्द अपनी ‘सद्गति’ को प्राप्त होता है!
फिल्म को ब्लैक कॉमेडी कहा जा रहा है! पहले हाफ़ के भारीपन को हल्का करने के लिए दूसरे हाफ़ को कॉमेडी में पेश किया गया है. यानी पत्नी जब टॉर्चर की जाती है तो दृश्य कष्टप्रद लेकिन बिल्कुल सहज है! लेकिन मर्द को जब बांध के मारा जाता है तो निश्चित रूप से बहुतों को सहानुभूति उपजती होगी. ऐसे दृश्य आम नहीं हैं न. सुनते हैं आलिया भट्ट बहुत ट्रोल की जा रही हैं.
अपने जीवन में न जाने कितनी ‘डार्लिंग्स’ को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष पिटते देखा है/देख रही हूं. Misogyny (स्त्रीद्वेष) हमारे समाज में बहुत आम है! लोग सहजता से बर्दाश्त करते हैं! पुरुषों के प्रति औरतों की क्रूरता बर्दाश्त नहीं होती. औरतों को भी नहीं. Mysandry (पुरुषद्वेष) शब्द उतना चलन में नहीं है! ज़ाहिर है बदरू की तरह औरतें बिच्छू यानी पुरुष द्वेषी नहीं बनना चाहती! बन ही नहीं सकती! मेंढकी ही बनी रहना चाहती हैं!
पर बद्रुओं से (तमाम औरतों से) हाथ जोड़ कर गुज़ारिश है, बेशक अपने अपने शौहरों पर ऐतबार कीजिए क़यामत तक, पर मार मत खाइए! पहली बार में ही हाथ तोड़ दीजिए! हमेशा के लिए…
डायरेक्टर – जसमीत के रीन की पहली फ़िल्म को ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म नेटफ्लिक्स पर देखा जा सकता है.
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