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Thursday, May 1, 2025
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अनोखी प्रेरक कथा जज राधा विनोद पाल

अनोखी प्रेरक कथा – जज राधा विनोद पाल

राम अयोध्या सिंह-

राधा विनोद पाल मित्र राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के एक न्यायाधीश थे जो दूसरे विश्वयुद्ध में हारे धुरी राष्ट्रों के विरुद्ध गठित किया गया था। द्वितीय  विश्वयुद्ध  के बाद विजयी मित्र राष्ट्रों नें उसमें पराजित धुरी राष्ट्रों को दोषी ठहराने के लिए इस अन्तरराष्ट्रीय अदालत का गठन किया जिसमें 11 न्यायाधीश थे उनमें से एक राधा विनोद पाल भी थे। सभी मित्र राष्ट्रों के पक्षधर न्यायाधीशों ने धुरी राष्ट्रों के 28 लोगों के खिलाफ अपराध तय करते हुए उन्हें मृत्युदंड की सजा देने की पेशकश की थी। (Unique Inspirational Story)

राधा विनोद पाल ने कहा कि वे उनसे सहमत नहीं है क्योंकि मित्र राष्ट्रों ने भी युद्ध में अंतर्राष्ट्रीय नियमों का घोर उल्लंघन किया है और एटम बम का अनावश्यक प्रयोग करके जापान के करोड़ों लोगों की जिंदगी को बर्बाद किया है। यह मानवाधिकार का उलंघन है। सारे न्यायाधीश स्तंभित थे क्योंकि मित्र राष्ट्र द्वारा बैठाए गए न्यायाधीशों में कोई भी उनके विरुद्ध बोल सकता था इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी।

उन्होंने युद्धबंदियों पर मुकदमा चलाने को विजेता की जबर्दस्ती बताते हुए सभी युद्धबंदियों को छोड़ने का फैसला दिया था। जापान के राष्ट्रवादी लोग राधा बिनोद पाल को बहुत चाहते हैं । इसके विपरीत बहुत से भारतीय इतिहासविदों की राय है कि उनका रवैया वास्तव में उपनिवेशवाद के खिलाफ था उन्हें जापान के युद्ध अपराधियों से कोई खास सरोकार नहीं था। (Unique Inspirational Story)

इस तथ्य को भी नकारा नहीं जा सकता कि वे बचपन से ही जापान से बड़े प्रभावित थे और उसे इकलौता ऐसा एशियाई देश मानते थे जो पश्चिम की दादागिरी का जवाब देना जानता था। जापान के यासुकुनी मंदिर तथा क्योतो के र्योजेन गोकोकु देवालय में न्यायमूर्ति राधाविनोद के लिए विशेष स्मारक निर्मित किए गये हैं।

यद्यपि उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय कानून का औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था, फिर भी द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब जापान के विरुद्ध ‘टोक्यो ट्रायल्स’ नामक मुकदमा शुरू किया गया तो उन्हें इसमें न्यायाधीश बनाया गया। डॉ॰ पाल ने अपने निर्णय में लिखा कि किसी घटना के घटित होने के बाद उसके बारे में कानून बनाना नितान्त अनुचित है। उनके इस निर्णय की सभी ने सराहना की। अपने जीवन के अन्तिम दिनों में डॉ॰ पाल ने निर्धनता के कारण अत्यन्त कष्ट भोगते हुए 10 जनवरी 1967 को यह संसार छोड़ दिया। (Unique Inspirational Story)

मित्र राष्ट्र अर्थात अमरीका, ब्रिटेन, फ्रान्स आदि देश जापान को दण्ड देना चाहते थे इसलिए उन्होंने युद्ध की समाप्ति के बाद ‘क्लास ए वार क्राइम्स’ नामक एक नया कानून बनाया जिसके अन्तर्गत आक्रमण करने वाले को मानवता तथा शान्ति के विरुद्ध अपराधी माना गया था। इसके आधार पर जापान के तत्कालीन प्रधानमन्त्री हिदेकी तोजो तथा दो दर्जन अन्य नेता व सैनिक अधिकारियों को युद्ध अपराधी बनाकर कटघरे में खड़ा कर दिया। 11 विजेता देशों द्वारा 1946 में निर्मित इस अन्तरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण (इण्टरनेशनल मिलट्री ट्रिब्यूनल फार दि ईस्ट) में डॉ॰ राधाविनोद पाल को ब्रिटिश सरकार ने भारत का प्रतिनिधि बनाया था।

इस मुकदमे में दस न्यायाधीशों ने तोजो को मृत्युदण्ड दिया; पर डॉ॰ राधाविनोद पाल ने न केवल इसका विरोध किया, बल्कि इस न्यायाधिकरण को ही अवैध बताया। नतीजा यह हुआ कि न्यायिक प्रक्रिया नए सिरे से दुहराई गई।और उन 28 में से कई लोगों की निर्दोष सिद्ध पाया गया और  मृत्यु दंड से  मुक्त  किया गया। और इस तरह जस्टिस राधा विनोद पाल रातों रात एक दिन में अंतरराष्ट्रीय शख्सियत बन गए। इस ट्रायल पर Tokyo Trial नाम से भी बनी है। (Unique Inspirational Story)

जापान में आज भी उन्हें एक महान व्यक्ति की तरह सम्मान दिया जाता है।जापान के सर्वोच्च धर्मपुरोहित नानबू तोशियाकी ने डॉ॰ राधाविनोद की प्रशस्ति में लिखा है कि:

“हम यहाँ डॉ॰ पाल के जोश और साहस का सम्मान करते हैं जिन्होंने वैधानिक व्यवस्था और ऐतिहासिक औचित्य की रक्षा की। हम इस स्मारक में उनके महान कृत्यों को अंकित करते हैं जिससे उनके सत्कार्यों को सदा के लिए जापान की जनता के लिए धरोहर बना सकें। आज जब मित्र राष्ट्रों की बदला लेने की तीव्र लालसा और ऐतिहासिक पूर्वाग्रह ठण्डे हो रहे हैं, सभ्य संसार में डॉ॰ राधाविनोद पाल के निर्णय को सामान्य रूप से अन्तरराष्ट्रीय कानून का आधार मान लिया गया है।” (Unique Inspirational Story)

जस्टिस राधा बिनोद पाल जापान के तो पूज्यन्ते महानायक हो गए। जापान में उनके नाम से 2 सड़कें हैं उनकी मूर्ति लगी है और कई संस्थाएं उनके नाम से काम कर रही हैं लेकिन मित्र राष्ट्रों के देश उनसे खास नाराज रहे । हालांकि अब वह दुनिया में नहीं हैं पर पूरी दुनियां में मानवाधिकार के पुरोधा माने जाते हैं और और मानव अधिकार संस्थानों में उनका बड़ा नाम है लेकिन दुर्भाग्य देखिए के भारत में उनको जानने वाले कम लोग हैं।  इसलिए राधा विनोद पाल का भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में क्योंकि उनका कोई विशेष जिक्र नहीं मिलता है।

मेरा  मत है कि भारत में कम से कम उनके बारे में बच्चों को तो बताया जाना चाहिए। उनकी जीवनी प्रेरक है। क्योंकि राधा विनोद पाल एक गाय चराने वाली महिला की पुत्र थे और उनको स्कूली शिक्षा नहीं मिली थी। लेकिन जहां वह गाय चराते थे वहां एक पाठशाला थी और उसमें वह बाहर से बैठकर जो अध्यापक पढ़ाते थे तो सुनते रहते थे एक दिन उस स्कूल का निरीक्षण हुआ और जब निरीक्षक ने बच्चों से सवाल किए उसमें राधा विनोद पाल भी आ कर बैठ गए थे और उन्होंने जब सभी प्रश्नों के सही उत्तर दिए तो निरीक्षक ने पूछा तुम किस क्लास में पढ़ते हो?

उन्होंने कहा कि मैं पढ़ता नहीं हूं गाय चराता हूं।  निरीक्षक इतना खुश हुआ कि उसने सब अध्यापकों से कहा इस बच्चे का दाखिला लिया जाए फीस भी माफ रखी जाए इस तरह से राधा विनोद पाल एक चरवाहे के लड़के से जीवन शुरू करके मित्र राष्ट्रों के द्वारा निर्धारित न्यायालय के न्यायाधीश हुए केवल न्यायाधीश ही नहीं हुए उन्होंने उन्हीं मित्र राष्ट्रों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में सब न्यायाधीशों के फैसले से अलग फैसला दिया और विश्व विख्यात ऐसे महान पुरुष हुए जिसने बिंदु से सिंधु तक की यात्रा की है यह प्रेरक जीवनी बच्चों को अवश्य पढ़ाई जानी चाहिए।(Unique Inspirational Story)


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