डॉ. सोमनाथ आर्य
बिहार के भागलपुर जिला मुख्यालय से तकरीबन 30 किलोमीटर की दूरी पर छोटी छोटी पहाड़ियों से घिरा एक कस्बाई इलाका है शाहकुंड। शाहकुंड एक ऐसा पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थल जो आज इतिहास और अतीत की तमाम खूबियों और अच्छाइयों से लबालब भरे रहने के बावजूद नाम और पहचान का मोहताज है। यहाँ इतिहासकारों ने अपनी साझा कल्पनाओं का जाल अपने निजी धार्मिक स्वार्थ की पुनर्स्थापना के लिया बुना, नतीजा, शाहकुंड को उसके हिस्से का न्याय नहीं मिल पाया। (Dhamma Chakra Shakya Singh)
इतिहासकार देवताओं और राष्ट्र जैसे अंतरवैयक्तिक वास्तविकताओं के विकास को समझने की कोशिश करते हैं , वहीं एक खास धर्म की धर्मान्धता से ग्रसित इतिहासकार छलपूर्वक इतिहास को कब्ज़ा करने की कोशिश करते है। जिसका भी एक बड़ा नुकसान शाहकुंड को हुआ। वास्तविकताओं को समझने की उनकी यह भूल किसी शर्मनाक हादसे से कम नहीं है। इसका उदाहरण है शाहकुंड में शाक्यसिंह की यह प्राचीन मूर्ति। स्थानीय इतिहासकारों ने इसे भगवान् नरसिंह की मूर्ति बताकर इसे हिन्दू धर्म से जोड़ दिया। जबकि शाहकुंड में प्राप्त यह मूर्ति भारतीय प्रतिमा विज्ञान और मूर्तिशिल्प के लिहाज से शाक्यसिंह की है। भगवान बुद्ध का एक नाम शाक्यसिंह भी है और सिंघनाद भी यह मूर्ति काले ग्रेनाइट की है। (Dhamma Chakra Shakya Singh)
शाहकुंड में प्राप्त शाक्यसिंह अर्थात सिंहनाद के चार हाथ हैं। जिसके बांयें हाथ के निचले हिस्से में धम्मं चक्र है। जिसमें 24 तीलियाँ है जो बौद्ध धर्म से जुड़ा हुआ है। बौद्ध पन्थ में धर्मचक्र का विशेष महत्व है। बुद्ध ने सारनाथ में जो प्रथम धर्मोपदेश दिया था उसे धर्मचक्र प्रवर्तन भी कहा जाता है। आरम्भिक काल से ही प्रायः सभी बौद्ध मन्दिरों, मूर्तियों और शिलालेखों पर धर्मचक्र का प्रयोग अलंकरण के रूप में किया गया मिलता है। वर्तमान में धर्मचक्र बौद्धधर्म का प्रमुख प्रतीक है कार्बन डेटिंग और वैज्ञानिक सबूत के आधार पर ही इस मूर्ति के कालखंड को निर्धारित किया जा सकता है। बिना कार्बन डेटिंग के कुछ भी कह पाना संभव नहीं है। हाँ, इतना तय है कि यह मूर्ति बौद्धकालीन है। (Dhamma Chakra Shakya Singh)
शाक्यसिंह की इस मूर्ति ने यूनानी कला के आधार स्वरूप ग्रहण किया गया है। यूनानी कलाकार यूनानी शैली की मूर्ति निर्माण में पूर्णतः दक्ष थे। उनके हाथ उसी शैली में सध चुके थे। फलतः भारतीय अभिप्राय से सम्बद्ध बुद्ध की मूर्तियों को भी उन्होंने यूनानी आदर्शों पर ही गढ़ा है। शाक्यसिंह की मूर्तियाँ यूनानी कला-परम्परा के प्रभाव के कारण स्वस्थ निर्दोष शरीर के आधार पर गड़ी हुई हैं, जिनमें शरीर रचना विज्ञान पर विशेष ध्यान दिया गया है। जिसका मुखमण्डल कुछ अण्डाकार रूप में वैसा ही प्रदर्शित किया गया है। मूर्ति में उग्रता का भाव नहीं है। (Dhamma Chakra Shakya Singh)
मूर्ति पूरी तरह से शांत चित है। आँखे झुकी हुई है। जैसे क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली गयी हो। लेकिन यह कला गान्धार कला के काफी करीब है। शाक्यसिंह की इस मूर्ति में सिर पर उष्णीष प्रदर्शित किया गया है। अपोलो और एकोडाइट की यूनानी मूर्तियों में सिर पर जूड़े का प्रदर्शन किया जाता था, जो एक उभार के रूप में होता था। गान्धार शिल्पी ने इस यूनानी निर्माण परम्परा को बुद्ध मूर्तियों में दर्शाया है। इस प्रकार के उभार को क्रोबीलोज कहा जाता था।शाक्यसिंह की इस मूर्ति में कमर से लेकर घुटने तक वस्त्र धारण किये हुए प्रदर्शित किया गया है। (Dhamma Chakra Shakya Singh)
बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक भावों को उजागर करती है यह प्राचीन मूर्ति गान्धार-शिल्प में निर्मित बुद्ध-मूर्तियों में बौद्ध धर्म की परम्परा और विश्वासों के प्रतीकात्मक तथ्यों का भी निर्वाह हुआ है। सौन्दर्य पक्ष के साथ ही साथ आध्यात्मिक भाव बोध को भी सहज रूप में प्रस्तुत किया गया है। बुद्ध-मूर्तियों के अर्द्धोन्मीलित नयन, मुखमण्डल पर माधुर्य और कान्ति का भाव आदि लक्षणों के माध्यम से शिल्पकार ने लौकिक धरातल से उठाकर उसमें आध्यात्मिक भावों को उजागर किया है। (Dhamma Chakra Shakya Singh)
शाहकुंड में प्राप्त शाक्यसिंह अर्थात सिंहनाद के चार हाथ हैं। जिसके बांयें हाथ के निचले हिस्से में धम्मं चक्र है। जो बौद्ध धर्म से जुड़ा हुआ है। बौद्ध पन्थ में धर्मचक्र का विशेष महत्व है। बुद्ध ने सारनाथ में जो प्रथम धर्मोपदेश दिया था उसे धर्मचक्र प्रवर्तन भी कहा जाता है। आरम्भिक काल से ही प्रायः सभी बौद्ध मन्दिरों, मूर्तियों और शिलालेखों पर धर्मचक्र का प्रयोग अलंकरण (सजावट) के रूप में किया गया मिलता है। वर्तमान में धर्मचक्र बौद्धधर्म का प्रमुख प्रतीक है।कालांतार में यही धर्म चक्र प्रवर्तन कहलाने लगा। (Dhamma Chakra Shakya Singh)
बुद्ध के उपदेश देने के इस कार्य को ही धर्म चक्र के आरम्भ का अथवा प्रवर्तन का सूचक माना गया और इसे एक चक्र में आठ तीलियों के रूप में दर्शाया जाने लगा और इसे धर्मचक्र का नाम दिया गया। धम्मचक्र के आठ पहिए तथागत बुद्ध के बताए हुए अष्टांगिक मार्ग को दर्शाते हैं। बाद के अनुयायियों ने 24 आवश्यक गुण निर्धारित किए जैसे धैर्य, श्रद्धा, आत्म नियंत्रण आदि, इन्हें भी बाद के धर्मंचक्र में 24 आरियों के रूप में प्रतीक रूप दर्शाया जाने लगा। अशोक के प्रस्तर लेखों में भी धर्मचक्र है और अशोक स्तम्भ में यह चक्र 24 आरियों का है। इसे ही भारत के राष्ट्रीय ध्वज में अपनाया गया है। वहीं शाक्यसिंह अर्थात सिंहनाद के दाहिने हाथ में बौद्ध धर्म के धम्म स्तम्भ है और एक हाथ वरद मुद्रा में है। (Dhamma Chakra Shakya Singh)