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Thursday, May 1, 2025
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आजादी के आंदोलन और आदिवासियों की भूमिका -सुरेंद्र सोनकर, सामाजिक चिंतक

महाराष्ट्र के भील समुदाय से आने वाले आधुनिक कवि हैं उनकी कविताओं में दर्द है आदिवासियों की व्यथा की पीड़ा है वो उस समाज से आते हैं उनसे ज्यादा कौन महसूस करता है कवि कल्पनाओं में भी होता है औऱ पड़ती चोट से जब कराह उठता है तो निकलते शब्द आह कहने को मजबूर होते हैं। ऐसे ही हैं वाहरु सोनवणे जिन्हें लोग प्यार से भाऊ कहते हैं उनकी कविता है ‘ मंच ‘ में लिखते हैं
हमें कभी बुलाया भी नहीं / उंगली के इशारे से / हमें अपनी जगह दिखाई गयी / हम वहीं बैठ गए हमें शाबासी मिली / औऱ वे मंच पर खड़े होकर / हमारे दुःख हमीं से कहते रहे। (Freedom movement and the role of tribals)

आदिवासी जीवन, समस्या, संघर्ष और वेदना को समझने के लिए वाहरु की कविता वास्तविक चित्र बनाती है।
जब कभी आदिवासी अधिकार की बात करते हैं दुःख को फुसफुसाते हैं तो उनकी सुनी नहीं जाती डराया जाता है धमकाया जाता है मारा जाता है उनकी महिलाओं की इज्ज़त का कोई मोल नहीं सही बात तो यह है आदिवासियों का दुख उनका अपना नहीं बना, कभी बस्तर में मारे गए , स्टैच्यू ऑफ यूनिटी किसी के लिए वोट के लिए बड़ी सी प्रतिमा लगानी हो पर उजड़े आदिवासी, मणिपुर जाति की अग्नि में जल रहा आदिवासियों के घर उजड़े मारे जा रहे महिलाओं की अस्मत सड़क पर पर दौडाई गई, यहां तक स्वतंत्रता व कारगिल का योद्धा जाति जंग में हार गया हजारों आदिवासी आश्रय घरों के सहारे क्या इसीलिए आदिवासी योद्धाओं ने आजादी के आंदोलन में खुद को झोंक दिया था, आज भी लोकगीतों और वीर गाथाओं में जल, जंगल, जमीन के साथ साथ अपने देश के प्रति संघर्ष के लिए जपे जाते हैं। (Freedom movement and the role of tribals)

बिरसा मुंडा, टंटया भील, मण्डला जिले का विद्रोही गोंड़ राजा, तिलका माँझी, भीमा नायक, ताना भगत, सिद्धू कान्हू, भीमा भील, सिंगी दायीं, वीर बालिका कालीबाई, चांद भैरव, बिरसा मुंडा को धरती आबा कहा जाता है यानी धरती के भगवान झारखंड के राँची परगने में मिशनरियों, जमींदारो साहूकारों द्वारा जमीन जब्त की जा रही थीं को लेकर उनके आंदोलन कौन भूल सकता है अन्धविश्वास को लेकर हो रहे धर्म परिवर्तन को रोका अंग्रेजों के दमन के विरुद्ध आत्मसम्मान की शिक्षा देते हुए महान आंदोलन उलगुलान किया. अंग्रेजों से लोहा लिया औऱ साहूकारों के शोषण से मुक्ति दिलवाई, आज अनेक बलिदानियों की बदौलत आज देश में स्वतंत्रता आयी जनता का शासन जनता के द्वारा जनता के लिये व्यवस्था हुई, सभी आजाद महसूस करें कि जिम्मेदारी शाशन सत्ता पर बैठे लोगों की है इस देश के लिए आजादी की लड़ाई में सभी धर्म जाति के लोगों ने भूमिका निभाई है सभी के हक अधिकारों का हनन न हो कि जिम्मेदारी सरकार को निभानी है।

-सुरेंद्र सोनकर, सामाजिक चिंतक

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

लेखक सुरेंद्र सोनकर देश के एक प्रतिष्ठित सामाजिक चिंतक और विचारक हैं जो की देश के कई बड़े अखबारों एवं पत्र पत्रिकाओं में लिखते रहते हैं।

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