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Wednesday, April 30, 2025
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‘क्लाड इथरली’ और हिरोशिमा

-मनीष आज़ाद

परमाणु बम की प्रचंड ‘आग’ से अमेरिका में भी एक आदमी सालों झुलसता रहा. उसका नाम था- ‘क्लाड इथरली’ (Claude Eatherly). क्लाड इथरली 1945 में उस 90 सदस्यीय टीम का सदस्य था, जिसने हिरोशिमा-नागासाकी पर परमाणु बम गिराया था. 6 अगस्त 1945 को क्लाड इथरली ने हिरोशिमा के ऊपर जहाज से मौसम का जायजा लिया और रिपोर्ट भेजी कि मौसम साफ है. बम गिराया जा सकता है. इस रिपोर्ट के मिलने के तुरंत बाद हिरोशिमा पर परमाणु बम गिरा दिया गया. बम गिराने वाले पायलटों ने जब पीछे मुड़कर नीचे की ओर देखा तो उन्हें लगा कि जैसे उन्होंने एक सूरज नीचे गिराया हो, आग का तूफान उठ रहा था. इन पायलटों ने अपनी सर्विस में कई बम गिराए थे, लेकिन यह उन सबसे अलग था. (Claude Etherly and Hiroshima)

क्लाड इथरली सहित 90 सदस्यीय इस टीम को बाद में पता चला कि इस आग के तूफान में 70 हजार लोग तुरन्त भस्म हो गए, इनमें वे हजारों मासूम बच्चे भी थे, जिन्हें मांएं धूप से भी बचाने के लिए अपने सीने से लगाये रखती थी. ये बच्चे 1000 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा तापमान में मिनटों में मानो धुआं हो गए. पूरे 3 माह बाद उन्हें पता चला कि जिस बम को गिराने वाली टीम के वे सदस्य थे, वह कोई सामान्य बम नही, बल्कि दुनिया का पहला परमाणु बम था.

प्रोमेथियस ने जब ईश्वर से आग चुराकर मनुष्य को सौंपी होगी तो उस वक़्त यह कल्पना भी नहीं की होगी कि मनुष्यों में से ही कुछ ताकतवर बर्बर लोग इस आग का दावानल बनाकर इसमें अपने ही जैसे दूसरे मनुष्यों को भून देंगे.

बहरहाल इसके बाद उस टीम के 89 लोगों ने तो अपने आपको सुविधा जनक तर्क से यह समझा लिया कि हमें तो पता ही नहीं था कि यह परमाणु बम है, या कि हम नहीं होते तो कोई और होता.

लेकिन क्लाड इथरली अपने को नहीं समझा पाए. और वह अपने आपको इस जघन्य अत्याचार का दोषी मानने लगे. उधर क्लाड इथरली को ‘वार हीरो’ का सम्मान मिल रहा था. यह सम्मान उन्हें और बेचैन करने लगा. यह उनपर एक असहनीय बोझ की तरह हो गया. इस सम्मान के जाल से निकलने के लिए उन्होंने छोटे छोटे अपराध भी किये, छोटी छोटी चोरियां भी की क्योंकि वे अपने आपको दंड देना चाहते थे. लेकिन हर बार जब कोर्ट में उनकी मंशा उजागर हो जाती थी तो आमतौर से जज केस निरस्त कर देता. उन्होंने कई बार आत्महत्या करने की भी कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए. वे अपनी कमाई का अच्छा-खासा हिस्सा हिरोशिमा के पीड़ितों को भेजने लगे. लेकिन उनकी बेचैनी बढ़ती ही गयी और अंततः पागलपन की स्थिति में ही 1 जुलाई 1978 को उनकी मौत हो गयी. अपने इसी अंतर्द्वंद्व पर उन्होंने एक किताब ‘Burning Conscience’ भी लिखी.

प्रोमेथियस को आग चुराने की सजा उसे ‘अंतहीन यातना’ के रूप में मिली. लेकिन आग को दावानल बनाकर लाखों लोगों को मारने वाले बर्बर अमरीकी साम्राज्यवादियों को हम आज तक सजा नहीं दे पाए. पागल तो क्लाड इथरली हुआ. लेकिन बर्बर साम्राज्यवादी आज भी नए-नए हिरोशिमा-नागासाकी बनाने की योजना पर बदस्तूर काम कर रहे हैं.

मुक्तिबोध ने क्लाड इथरली पर इसी नाम से ही एक शानदार कहानी लिखी है. इसमे वे लिखते है-‘जो आदमी अंतरात्मा की आवाज को कभी-कभी सुन लिया करता है, और उसे बयान करके उससे छुट्टी पा लेता है, वह लेखक हो जाता है. जो अन्तरात्मा की आवाज को बहुत ज़्यादा सुनने लगता है और वैसा करने भी लगता है वह समाज विरोधी तत्वों में शामिल हो जाता है. और जो आत्मा की आवाज सुनकर बेचैन हो जाता है और उसी बेचैनी में भीतर के हुक्म का पालन करने लगता है, वह पागल हो जाता है.उसे पागलखाने भेज दिया जाता है.’

अंत मे कहानी का मानो सार प्रस्तुत करते हुए मुक्तिबोध लिखते हैं-‘हमारे मन-मस्तिष्क-हृदय में ऐसा ही एक पागलखाना है, जहाँ हम उन उच्च पवित्र और विद्रोही विचारों और भावों को फेंक देते हैं जिससे कि धीरे-धीरे या तो वह खुद बदलकर समझौतावादी पोशाक पहनकर सभ्य भद्र हो जाये यानी दुरुस्त हो जाएं या फिर उसी पागलखाने में पड़े रहें.

हम सबके भीतर एक ‘क्लाड इथरली’ है. हम उसे बाहर लाते हैं या उसे तहखाने के पागलखाने में सड़ने के लिए छोड़ देते है, यह निर्णय हमारा होता है. (Claude Etherly and Hiroshima)

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