कॉर्पोरेट जॉब्स की दुनिया में होती लगातार मौत ने कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या अपने ही साथ काम करने वाले अपने जूनियर कर्मचारी को इतना प्रताड़ित किया जाये कि वह अवसाद में आ जाये और आत्महत्या कर ले ? क्या टारगेट अचीवमेंट करने के लिए इतना प्रेशर/ दबाव दिया जाये कि व्यक्ति आत्महत्या कर ले ? कौन ऐसे लोग हैं जो ऐसा वर्क कल्चर तैयार कर रहे हैं?(Another death work pressure)
झांसी के तरुण सक्सेना एक फाइनेंस कंपनी में एरिया मैनेजर थे। उन्होंने अपने सीनियर अधिकारियों से तंग आकर रविवार सुबह अपने घर में फांसी लगाकर जान दे दी। घटना की जानकारी तब हुई जब उनकी पत्नी कमरे में गयी तो उन्होंने तरुण को फंदे से लटके देखा , देखते ही उनकी पत्नी की चीख निकल गयी। चीख सुनकर परिवार के अन्य लोग भी कमरे में पहुंचे। शव के पास से सुसाइड नोट भी मिला है।सुसाइड नोट से पता चला की तरुण काफी बड़े अवसाद से गुजर रहे थे।
तरुण सक्सेना ने सुसाइड नोट में अपना दर्द बयान किया। कंपनी के सीनियर अधिकारी ने तरुण सक्सेना पर दबाव बना रखा था उन्हें नौकरी से निकालने तक की धमकी दे दी गयी थी। मीटिंग्स में उनके साथ गाली गलौज तक की गयी। सीनियर्स ने इतना वर्क प्रेशर दे दिया कि आखिर तंग आकर उन्हें ख़ुदकुशी करनी पड़ गयी।उनके एक बेटा और एक बेटी है। पिता जो एक मेडिकल कॉलेज में क्लर्क के पद पर थे, अब रिटायर हो चुके हैं। घटना की जानकारी पुलिस को दी गयी। पुलिस ने शव को पोर्स्टमार्टम के लिए भेज दिया (Another death work pressure)
आपको बता दें कि 24 सितम्बर को लखनऊ में एक निजी बैंक में अधिकारी पद पर कार्यरत सदफ फातिमा की अपने ऑफिस में कुर्सी से गिरने के बाद मौत हो गयी थी। उनके साथी कर्मचारियों से बात करने पर पता चला कि फातिमा पर वर्क लोड बहुत अधिक था। इससे पहले 20 जुलाई को महाराष्ट्र के पुणे में एक निजी कंपनी में CA के पद पर कार्यरत एना सेबस्टीन की कार्डियक अरेस्ट से मौत हो गयी। ऐना की माँ ने भी कंपनी पर आरोप लगाया था कि कंपनी ऐना को छुट्टी वाले दिन भी काम करवाती थी। ऐना हमेशा यह कहती थी की कंपनी उन्हें छुट्टी नहीं देती थी। जिस वजह से ऐना काफी परेशान रहती थीं। ऐना को डॉक्टर ने भी आगाह किया था की वर्क लोड ज्यादा है उन्हें आराम की जरुरत है। ऐना की मौत के बाद कंपनी से कोई भी उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुआ।
इन सब घटनाओं से साबित होता है की निजी कंपनियां व उसमें उच्च अधिकारियों को कंपनी के टारगेट किसी व्यक्ति की जान से बड़कर हैं। कंपनियां इतने बड़े टार्गेट्स रखती हैं की कर्मचारी उन्हें अचीव करने की जद्दो जहद में अवसाद में आ जाये दिल और दिमाग से बीमार हो जाये और यहाँ तक की आत्महत्या करनी पड़ जाये।
कौन लेगा ऐसी घटनाओं की जिम्मेदारी ? कंपनी और अधिकारिओं को फिर एक नया कर्मचारी मिल जायेगा लेकिन क्या वे तरुण , फातिमा व ऐना के परिवारों में उनकी पूर्ति कर देंगी !
क्या कंपनी व उनमें कार्यरत अधिकारियों के टारगेट्स की नीतियां बदलेंगी ? ये सवाल कब तक सवाल रहेंगे ? कब इनका जवाब मिल पायेगा ?