
उत्तर भारत का इतिहास बदल गया। बौद्ध राजा देवपाल का पुत्र बौद्ध राजा महेंद्रपाल देव का नाम इतिहास में जुड़ गया। बात नौवीं सदी की है। पैरों में लगी एक ठोकर ने एक बौद्ध राजा और एक बड़े बौद्ध विहार की खोज कर डाली। (Buddhist History Here Came)
जगजीबनपुर पश्चिम बंगाल में मालदा से 40 किलोमीटर पूरब है। गर्मियों के दिन में 1987 को नंददिघी तालाब के पास किसान जगदीश गायेन भारी चीज से पैरों में ठोकर लगी। हाथ से निकालकर देखा तो वह तांबे का प्लेट था। तांबे का प्लेट उन्होंने पंचायत कार्यालय में जमा कर दिया। फिर वह बीडीओ कार्यालय होते हुए डीएम कार्यालय पहुंचा और अंतिम रूप से पुरातत्व विभाग के पास।
पुरातत्व विभाग ने बताया कि इस तांबे के प्लेट पर सिद्धमातृका लिपि में पाल राजा महेंद्रपाल देव का नाम लिखा है। एक बौद्ध राजा का इतिहास सामने आया। कारण कि इस पर लिखा था कि वह राजा देवपाल का पुत्र है। देवपाल की गणना इतिहास में एक बड़े बौद्ध राजा के रूप में होती है। (Buddhist History Here Came)
इतिहास को एक खोया हुआ बौद्ध राजा मिल गया, जिसका नाम 1987 से पहले कोई नहीं जानता था। राजा महेंद्रपाल देव ने अपने महासेनापति वज्रदेव को नंददीघी तालाब के पास की जमीन बौद्ध विहार बनाने के लिए ग्रांट कर दिया था। महासेनापति वज्रदेव ने वहाँ विशाल बौद्ध विहार बनवाया, जिसका नाम नंददीघी विहार है। दीघी का अर्थ पोखरा होता है।
ये सब बातें तांबे के प्लेट पर लिखी हुई हैं। फिर नंददीघी विहार की खोज शुरू हुई। 1995 से व्यापक खुदाई आरंभ हुई। 10 सालों तक चली। (Buddhist History Here Came)
नंददीघी विहार उभरकर सामने आया। विक्रमशिला विहार की तर्ज पर है। भिक्खुओं के कक्ष मिले। बुद्ध और बुद्धिज्म से जुड़ी मूर्तियां मिलीं। बालकनी, सीढ़ियां, स्नानागार, कुआँ, प्रांगण और प्रवेश-द्वार मिले। 250 से अधिक सजावटी पट्टिकाएं मिलीं।
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