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Thursday, May 1, 2025
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बौद्ध धर्म का भारत से लोप

राकेश मिश्र कुमार


ईसा पूर्व की छठवीं सदी में भारत में पैदा हुआ बौद्ध धर्म भारत के अन्य समकालीन धर्मों ब्राह्मण या वैदिक , जैन, आजीवक के मुक़ाबले लंबे समय तक ज़्यादा प्रभावशाली रहा है। इस धर्म का प्रभाव भारत के बाहर तिब्बत, चीन, जापान, बमध्येशिया, श्री लंका और दक्षिण पूर्व एशिया तक पहुँचा है। मगर 12वीं सदी ई तक बौद्ध धर्म भारत से क़रीब क़रीब विलुप्त हो गया जब कि भारत के बाहर जहां यह धर्म पहुँचा था, वहाँ आज भी इसका पर्याप्त प्रभाव क़ायम है। (Extinction Buddhism from India)

भारत में बौद्ध धर्म के पतन के संबंध में बौद्ध ग्रंथों व इतिहासकारों व अन्य विचारकों के मध्य तीखे मतभेद रहे हैं । बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान और आर्य मंजुश्री कल्प के मुताबिक़ सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए 84000 स्तूप ब्राह्मण राजा पुष्य मित्र शुंग जिसने 185 ई पू में अन्तिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ की हत्या कर खुद राजा बन गया था, ज्योतिष ग्रंथ गार्गी संहिता जिसमें पुष्य मित्र शुंग के शासन काल में पश्चिमोत्तर से हमला करने वाले हिंद यवनों के संदर्भ मौजूद हैं.

पुष्यमित्र शुंग की इस घोषणा का उल्लेख मिलता है कि जो उसे एक श्रमण का सिर देगा उसे 100 दीनार का पारितोषिक दिया जाएगा। प्रख्यात इतिहासकार रोमिला थापर कहती हैं कि पुष्यमित्र शुंग के बौद्ध नरसंहार और स्तूप ध्वंस के ये कथन अतिशयोक्ति पूर्ण हैं। उल्लेखनीय है कि अगर पुष्यमित्र बौद्ध विरोधी होता तो वह साँची के स्तूप की चहारदीवारी का पुनर्निर्माण न कराता और न ही भरहुत का विशाल स्तूप बनवाता। (Extinction Buddhism from India)

हाँ ,यह संभव हो सकता है हिन्द यवनों के साथ युद्ध के दौरान सीमावर्ती बौद्ध श्रमणों की राजनिष्ठा संदिग्ध समझते हुए पुष्यमित्र ने उनकी हत्या करवायी हो। यह भी सच है कि पुष्यमित्र शुंग स्वयं ब्राह्मण और वैदिक /ब्राह्मण धर्मानुयायी था ।प्राचीन भारत के प्रामाणिक इतिहास का वह पहला राजा था जिसने योग सूत्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि के पौरोहित्य में अश्वमेध यज्ञ किया था।

मगर इस आधार पर उसे बौद्ध क्रान्ति के विरुद्ध प्रतिक्रान्ति का नायक कहना सही नहीं है। सम्राट अशोक के अभिलेखों से यह साफ़ पता लगता है कि उसने ब्राह्मणों और श्रमणों को समान महत्व दिया था और ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे यह कहा जा सके कि उसके शासन में किसी भी तरह ब्राह्मणों का महत्व कम हुआ था या उनका उत्पीडन किया गया था। (Extinction Buddhism from India)

पुष्यमित्र शुंग का मौर्य सेनापति होना अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि ब्राहमणेतर धर्मानुयायी मौर्य शासन तंत्र में ब्राह्मणों की प्रभावशाली भागीदारी बरकरार थी। ऐसी स्थिति में मौर्य काल में बौद्ध क्रान्ति तथा मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद ब्राह्मण प्रतिक्रान्ति का कथानक सचाई से बहुत दूर प्रतीत होता है ।

मौर्य सम्राट अशोक के बाद कुषाण सम्राट कनिष्क (प्रथम सदी ई.) तथा बंगाल के पाल शासकों के अलावे भारत में अन्य किसी बड़े राजा या सम्राट ने बौद्ध धर्म नहीं अपनाया था फिर भी 12वीं सदी ई में तुर्कों के आक्रमण व विध्वंस के पहले तक पूरे भारत में बौद्ध धर्म का पर्याप्त प्रभाव क़ायम रहा। (Extinction Buddhism from India)

उल्लेखनीय है कि अलग अलग धार्मिक विश्वासों और मतों के बीच साहचर्य और संवाद का भाव भारतीय संस्कृति की अद्वितीय विशेषता रही है। यही कारण था कि सम्राट अशोक तथा अन्य बौद्ध राजाओं ने न तो ब्राह्मण धर्मियों को सताया और न ही ब्राह्मण धर्मी राजाओं ने बौद्धों को सताया।

गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक नरेश बौद्ध धर्मी रुद्रसेन के साथ किया था और कुमार गुप्त ने बौद्ध विद्या केन्द्र नालन्दा के लिए न केवल भूमि दान में दी थी अपितु पर्याप्त आर्थिक सहायता भी दी थी । ईसा पूर्व दूसरी सदी से छठवीं सदी ई तक विकसित अजन्ता और एलोरा की गुफाओं में बौद्ध धार्मिक स्थापत्य व चित्र कला का विश्व विख्यात वैभव भी यह दर्शाता है. (Extinction Buddhism from India)

इस काल खंड में बौद्ध धर्म को भारत के राजाओं, सेठों और सामन्तों द्वारा यथेष्ट संरक्षण व प्रोत्साहन प्राप्त था। गौड देश के राजा शशांक ने अवश्य बोध गया के बोधिवृक्ष को तथा बौद्ध विहारों को क्षति पहुंचायी थी और बौद्धों की प्रताडना भी की थी किन्तु जल्दी ही वह हर्ष वर्धन के हाथों पराजित कर दिया गया। हर्ष वर्धन एक साथ बौद्ध और ब्राह्मण दोनों धर्मों का आदर करता था ।

उसने एक तरफ़ चीनी बौद्ध यात्री हुएन सांग की अभ्यर्थना की थी और उसकी अध्यक्षता में बौद्ध विद्वत् महासभा आयोजित की थी और दूसरी तरफ़ प्रयाग के ब्राह्मण धार्मिक मेले में उसने अपनी दानशीलता का भी परिचय दिया था शंकर दिग्विजय नामक काव्य के आधार पर कहा जाता है कि शंकराचार्य के प्रताप से बौद्धों का भारत से निष्कासन व विलोप हो गया था। (Extinction Buddhism from India)

महापंडित त्रिपिटकाचार्य राहुल सांस्कृत्यायन इस बात का खंडन करते हैं। उनका कहना है कि शंकराचार्य का शारीरक भाष्य अनमोल ग्रंथ अवश्य था किन्तु दिग्नाग, उद्योतकर, कुमारिल और धर्मकीर्ति जैसे दिग्गज दार्शनिकों के युग के लिए वह कोई बहुत ऊँचा ग्रंथ भी नहीं था।

आगे राहुल जी कहते हैं ,”एक ओर कहा जाता है कि शंकर ने बौद्धों को मार भगाया, दूसरी ओर हम उनके बाद गौड़ देश (बंगाल बिहार) में पाल वंशीय बौद्ध नरेशों का प्रचंड प्रताप फैला देखते हैं तथा उसी समय ओदन्तपुरी और विक्रम शिला बौद्ध विद्या केन्द्रों की स्थापना व उत्कर्ष भी देखते हैं। इसी समय हम भारतीय बौद्धों की तिब्बत पर धर्म विजय भी देखते हैं। (Extinction Buddhism from India)

11वीं सदी में जब कि शंकर दिग्विजय के मुताबिक़ भारत से बौद्ध भगाए जा चुके थे, तिब्बत से कितने ही बौद्ध भारत आते हैं और वे और वे सभी जगह बौद्ध गृहस्थों व भिक्षुओं को पाते हैं। पाल काल के बुद्ध ,बोधिसत्व और तांत्रिक बौद्ध देवी देवताओं की खंडित मूर्तियाँ उत्तरी भारत के गाँवों तक में पायी जाती हैं जिससे पता चलता है कि उस समय तक कोई शंकर बौद्धों को नेस्त नाबूद नहीं कर पाया था और शंकर द्वारा बौद्धों का देश निर्वासन कल्पना मात्र है।”

उपर्युक्त विवरणों से ए एल बाशम का यह कथन सही साबित होता है कि भारत में बौद्ध धर्म के पतन का मुख्य कारण उत्पीडन नहीं था और पंडित नेहरू का यह कथन भी सही लगता है कि भारत में बौद्धों और ब्राह्मणों के मध्य न तो कोई दुश्मनी थी और न है। (Extinction Buddhism from India)

(लोक माध्यम से साभार, यह लेखक के निजी विचार हैं।)


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