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Wednesday, April 30, 2025
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गांधी जितने पारम्परिक थे उतने ही उत्तर आधुनिक थे

अवधेश पांडे


 मनुष्य एक रिश्ते बनाने वाला सामाजिक प्राणी है। मनुष्य एकमात्र ऐसा प्राणी है जो खुद से अलग लोगों के साथ रिश्ते बनाता है। हमारे देश में रिश्ते बनाने की सबसे ज्यादा सीख अगर किसी आदमी ने दी तो उसका नाम महात्मा गांधी था। गांधीजी का मानना था कि हमें केवल एक ही प्रकार के लोगों से रिश्ते नहीं कायम करना चाहिए अपितु पूरी मानवता से रिश्ता कायम करना चाहिए। सबसे समृद्ध व्यक्ति वह होता है जिसके दोस्त अलग अलग भाषाओं के और अलग अलग राष्ट्रीयताओं के हों। (Gandhi was as traditional)

पूरी दुनिया एक परिवार है इसलिए दुनियाभर के लोगों से रिश्ते बनाना,उन रिश्तों की इज्जत करना और रिश्ते बनाने की प्रक्रिया में अपने से असहमत व्यक्तियों को इत्मीनान महसूस कराना ही गांधी का मुख्य दर्शन है। गांधीजी ने अपने अंतिम वर्षों 1947-1948 में अनेकों बार देशवासियों से कहा कि एक सभ्य राष्ट्र के लोग राष्ट्र से कहीं अधिक ऊंचे सिद्धांतों व नैतिक मूल्यों का पालन करते हैं।
गांधीजी ने कहा कि आजादी का मतलब ये नहीं है कि राष्ट्र कोई अनैतिक कानून बनाये और हम उस कानून का पालन करें बल्कि आजाद मुल्क होने का मतलब ये है कि उसके नागरिकों में इतना नैतिक साहस हो कि वे जिस कानून को अपने नैतिक मूल्यों के खिलाफ मानते हैं उस कानून का विरोध करने का साहस हो। गांधीजी ने कहा कि संवैधानिक नैतिकता का पालन करने वाले दरअसल वे लोग हैं जो हमेशा गलत कानून का विरोध करने के लिए तैयार रहते हैं। वे लोग नहीं जो आंख बंद करके इन कानूनों का पालन करने के लिए तत्पर रहते हैं। (Gandhi was as traditional)
महात्मा गांधी भारत सहित पूरे विश्व में अधिक से अधिक लोगों को मान्य हुए तो इसलिए कि उन्होंने अपने चारों के दरवाजे और खिड़कियां खुली रखीं और दुनियाभर की हवाओं को आने-जाने दिया। इसीलिए वे अपनी धरती में जड़ें जमाए रहे। उनकी शक्ति का स्रोत उनकी लोक संग्रह वृत्ति में था। गांधी ऐसे भारतीय समाज में पैदा हुए जहां लोग एक दूसरे को फूटी आंखों न सुहाते और एक दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं। ऐसे अनगिनत लोगों को गांधी ने अपने से जोड़ा। उनसे योग्यता और क्षमता के अनुसार काम लिया और उन्हें आखिर कुछ न कुछ बनाकर ही छोड़ा।
जिस देश को बनाने में गांधीजी ने इतना कुछ किया देश आजाद होने के बाद उन्हें अपने ही लोगों से लगातार निराशाओं का सामना करना पड़ा। उनका सपना था कि वे ऐसे भारत का निर्माण करेंगे जो सारी दुनिया के सामने उनके सामाजिक आदर्शों की जीती जागती मिशाल हो। उनके विरोधी उनके इन आदर्शों को एक बूढ़े की सनक समझते थे। लेकिन गांधी अपने विरोधियों को अंतिम सांस तक यही समझाते रहे कि पागलपन की ओर बढ़ती हुई मानवता को डूबने से बचाने के लिए यही एक कल्याणकारी मार्ग बचा है। (Gandhi was as traditional)
उनके प्यारे भारत के भले दो टुकड़े होने जा रहे थे उस समझदार आदमी का यही कहना था कि इस दुखद बंटबारे के बाद भी जो भारत बनेगा उसकी एक ही रंग में बने पाकिस्तान से बिल्कुल भी समानता नहीं होगी। भारत बहुरंगा मुल्क बनेगा। इसलिए जो लोग गांधीजी से प्रेरित हैं और खुद को गांधीवादी समझने की भूल करते हैं (मैं खुद को भी शामिल कर रहा हूँ) उन सभी को अपने आप से यह प्रश्न करना पड़ेगा कि क्या हम खुद पर वह काबू कर सके हैं जो हम दूसरों में देखना चाहते हैं।
इसलिए गांधीवादी बनना बहुत कठिन काम है। गांधी का उपदेश देकर कोई गांधीवादी नहीं बन सकता। गांधीवादी होने का अर्थ है कुछ करते रहना। बिना कुछ किये हम गांधीवादी नहीं बन सकते। गांधीवाद का मतलब सिर्फ चरखा कातना नहीं है, जब 2 अक्टूबर 1947 को गांधी के 78 वें जन्मदिन पर कॉंग्रेसियों द्वारा यह अपील की जाती है कि 78 लोग 78 दिन तक चरखा कातकर, 78 किलो सूत जमा कर गांधीजी को भेंट करेंगे। तो इसके जवाब में गांधी ने कहा कि खादी का पहला दौर (1918 -1947 ) खत्म हो चुका है। (Gandhi was as traditional)
खादी के पहले दौर का मतलब था भारत के गरीब लोगों को उनकी ताकत का अहसास कराकर अंग्रेजी साम्राज्य को उखाड़ना। अब 1948 से खादी का दूसरा दौर शुरू होता है । खादी के दूसरे दौर का मतलब है कि जो ताकत हमने अहिंसा से अर्जित की है। उस ताकत को भारत का जीवनदर्शन बनाया। अगर भारत के लोग सच्चे अर्थों में अहिंसक हैं तो हमें उस ताकत का इस्तेमाल समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति की मदद में करना चाहिए।
इसलिए जो लोग गांधीजी का विरोध करते हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि गांधी कभी नहीं मरते। वे मरने के बाद भी नहीं मरे। आज दुनिया सबसे ज़्यादा तत्व गांधी से ग्रहण कर रही है। वे जितने पारंपरिक थे, उतने ज़्यादा उत्तर आधुनिक साबित हो रहे हैं। वे हमारी सदी के तर्कवाद के विरुद्ध आस्था का स्वर रचते हैं। ऐसा लगता है कि हमारे समय के सबसे ज्वलंत मुद्दे उनकी विचारधारा की कोख में पल कर ही निकले हैं। (Gandhi was as traditional)
मानवाधिकार का मुद्दा हो, सांस्कृतिक बहुलता का मुद्दा हो या फिर पर्यावरण का मुद्दा हो,ये सब मुद्दे गांधीजी के चरखे से, या ज्यादा सही कहूँ तो उनके बनाए सूत से बंधे हुए हैं। गांधीजी भारत और विश्व के सबसे बड़े स्टेट्समैन हैं और हम गांधीजी के चरखे से बने सूत से बंधे हुए उनके बच्चे हैं। (Gandhi was as traditional)
(यह लेखक के निजी विचार हैं, लोक माध्यम से साभार)
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