भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए तैनात बलों में प्रमुख है केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल जिसे आम बोलचाल की भाषा में सीआरपीएफ कहा जाता है. यह सबसे पुराने केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बलों में से भी एक है. (History of CRPF)
सीआरपीएफ का गठन 1939 में क्राउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस के रूप में किया गया. क्राउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस भारत की तत्कालीन रियासतों में आंदोलनों एवं राजनीतिक अशांति तथा साम्राज्यिक नीति के रूप में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने में मददगार थी.
आजाद भारत में 28 दिसम्बर, 1949 को संसद के एक अधिनियम पारित कर इस बल का नाम केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल किया गया. तत्कालीन गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने स्वतंत्र राष्ट्र की बदलती जरूरतों के अनुरूप इस बल की ऐसी भूमिका की कल्पना की जो विभिन्न मौकों पर कारगर साबित हो.
1950 से पूर्व भुज, तत्कालीन पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ और चंबल के बीहड़ों में केरिपुबल की सैन्य टुकडि़यों ने कानून व्यवस्था बनाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई. आज़ाद भारत में विभिन्न रियासतों के एकीकरण के दौरान भी सीआरपीएफ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही. जूनागढ़ की विद्रोही रियासत और गुजरात में कठियावाड़ की रियासत ने जब भारतीय संघ में शामिल होने से इनकार किया तो सीआरपीएफ ने केंद्र सरकार की मदद कर यह एकीकरण संभव कर दिखाया.
आजादी के तुरंत बाद कच्छ, राजस्थान और सिंध की सीमाओं में घुसपैठ और सीमा पार अपराधों की जांच कर उनकी रोकथाम करने के लिए सीआरपीएफ की टुकडि़यों को ही भेजा गया. जब पाकिस्तानी घुसपैठियों ने जम्मू-कश्मीर सीमा पर हमला बोला तब भी सीआरपीएफ को यहां पाकिस्तानी सीमा पर तैनात किया गया.
भारत के हॉट स्प्रिंग कहे जाने वाले लद्दाख पर पहली बार 21 अक्तूबर 1959 को चीन द्वारा हमला कर दिया गयाइस हमले को सीआरपीएफ ने ही नाकाम किया. सीआरपीएफ के एक छोटे से गश्ती दल पर चीनी सैनिकों ने घात लगाकर हमला किया जिसमें बल के दस जवानों ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया. उनकी याद हर साल 21 अक्तूबर को देश भर में पुलिस स्मृति दिवस मनाया जाता है.
1962 के चीनी आक्रमण के दौरान एक बार फिर सीआरपीएफ ने अरूणाचल प्रदेश में भारतीय सेना की उल्लेखनीय मदद की. इस दौरान भी सीआरपीएफ के 8 जवान शहीद हुए. 1965 और 1971 के भारत पाक युद्ध में भी सीआरपीएफ ने भारतीय सेना के साथ अग्रिम मोर्चा लिया.
सीआरपीएफ की 13 कंपनियों को जब आतंवादियों से लड़ने के लिए भारतीय शांति सेना के साथ श्रीलंका में भेजा गया तब इसमें महिलाओं की एक टुकड़ी भी शामिल थी, अर्द्ध सैनिक बलों के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था.
संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के अंग के रूप में सीआरपीएफ को हैती, नामीबीया, सोमालिया और मालदीव में भी कानून और व्यवस्था बनाये रखने के लिए भेजा गया.
70 के दशक के बाद जब अलगाववादियों ने उत्तर पूर्व के त्रिपुरा और मणिपुर में शांति भांग करने की कोशिश की तो वहां सीआरपीएफ की बटालियनों को तैनात कर हालत काबू में किये गए थे. इसी दौरान ब्रह्मपुत्र घाटी भी अशांत थी. केरिपुबल की ताकत न केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए बल्कि संचार तंत्र व्यवधान मुक्त रखने के लिए भी इस्तेमाल में लायी गयी. पूर्वोत्तर के विद्रोहों से निपटने के लिए इस बल की प्रतिबद्धता का कोई मुकाबला नहीं है.
80 के दशक से पहले पंजाब में जब आतंकवाद छाया हुआ था, तब भी राज्य सरकार ने बड़े स्तर पर सीआरपीएफ की तैनाती की मांग की थी.
आज भी देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ की प्रतिबद्धता का कोई जवाब नहीं है. सीआरपीएफ है तो देश में शांति की गारंटी है.
(केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की वेबसाइट से प्राप्त जानकारी के आधार पर)