छत्तीसगढ़ के दांतेवाड़ा की जेल में वह शाम भी मनहूस सी रूटीन शाम ही थी. तारीख थी सोलह दिसंबर 2007 और घड़ी के कांटे वक़्त बता रहे थे शाम के 4:35. कैदियों को खाना परोसा जा रहा था. बंदीरक्षक बड़े इन्त्मिनान से थे. किसी के हाथ में हथियार थे तो कुछ बगैर हथियारों के ही तकनीकी काम निपटा रहे थे. जेल में सजायाफ्ता और विचाराधीन कैदियों की खासी तादाद थी जो अरसे से जेल में थे और जेल स्टाफ से उनकी बढ़िया बनती भी थी. (India’s Biggest Jail Break)
संतरियों और जेल स्टाफ ने पाया कि जो भी जहां है उसे वहीं काबू में कर लिया गया है. अचानक हुए इस हमले के लीडर थे जेल में बंद नक्सली नेता सुजीत मंडावी. सुजीत ने खुद सबसे पहले एक बंदीरक्षक की बंदूक कब्जे में की और उसे संतरी की कनपटी पर लगा दिया. इसके बाद सुजीत ने जेल के दूसरे सुरक्षा प्रहरियों पर घायल करने की गरज से फायर झोंक दिए. सुजीत ने ही इस जेल ब्रेक का ताना-बाना बुना था और लम्बे सअमे से प्लान किये जा रहे इस जेल ब्रेक की भनक तक जेल प्रशासन को नहीं हुई.
जाड़ों की शामें जल्दी गहरा जाती हैं सो सुरक्षाकर्मियों को काबू में करने के बाद कैदियों को भागने में कोई परेशानी नहीं हुई. कुल 299 कैदी फरार हो गए जिनमें से 110 नक्सलवादी थे.
इस जेल ब्रेक में फरार हुए नक्सली अपने साथ 6 रायफल और वायरलेस सेट भी ले गए. प्रदेश की राजधानी से मात्र 375 किमी दूर हुए इस जेल ब्रेक ने प्रशासन के सुरक्षा दावों की पोल खोल दी. नक्सल कैदियों ने भी अपनी ताकत से सत्ता को चुनौती दी थी. गौरतलब है कि दंतेवाड़ा का यह इलाका नक्सलवादी आन्दोलन के जबरदस्त प्रभाव में था.
यह देश का सबसे बड़ा जेल ब्रेक था. इस वारदात ने पूरे देश को झकझोर दिया था. राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री रामविचार नेतम ने खुद बयां देकर इसे सुरक्षा में भारी चूक बताया. इस जेल ब्रेक के कुछ ही नक्सली बाद में पकड़े जा सके.
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