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Wednesday, April 30, 2025
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कुम्भ बौद्धों का मेला है, ब्राह्मणों का नहीं, महान बौद्ध सम्राट हर्षवर्धन ने की थी कुम्भ मेले की स्थापना

बौद्ध भिक्षु ह्वेन त्सांग के निवेदन पर सम्राट हर्षवर्धन ने इलाहाबाद में कुंभ मेले की शुरुआत की थी. सम्राट हर्षवर्धन 7वीं शताब्दी में उत्तर भारत के महान बौद्ध शासक थे. उनका शासनकाल 590 से 647 ईस्वी के बीच था. सम्राट हर्षवर्धन हर पांच साल में पवित्र नदियों के संगम पर कुंभ मेले का आयोजन किया करते थे। मेले की शुरुआत भगवान बुद्ध के पूजन वंदन के साथ होती थी. सम्राट हर्षवर्धन जिस दिन मेले में आते थे उस दिन अपना सभी कुछ धम्म दान के रूप में भिक्षुओं और बौद्ध विहारों को दान कर दिया करते थे. इस दिन को महादान महोत्सव और जहाँ हर्षवर्धन अपना सभी कुछ दान करते थे उस भूमि को महादान भूमि कहा जाता था. ह्वेनसांग ने ही कुंभ मेले का पहला लिखित विवरण दिया था और सम्राट हर्षवर्धन की महान दानशीलता का उल्लेख किया था. ह्वेन त्सांग ने इस मेले के दौरान धार्मिक अनुष्ठानों, विशेष रूप से गंगा नदी में स्नान करने और बौद्ध भिक्षुओं द्वारा की जाने वाली पूजा-अर्चना का वर्णन किया. (Kumbh is a Buddhist fair)

ह्वेनसांग सम्पूर्ण भारत में भ्रमण किया और भगवान बुद्ध से जुड़े सभी स्थलों की यात्रा की और उसका इतिहास अपने यात्रा विवरण में लिखा। ह्वेनसांग प्राचीन भारत के इतिहास का सबसे बड़े स्रोत में से एक हैं।
कुंभ मेले की शुरुआत की रोचक कहानी…

कुंभ मेले या महादान महोत्सव की शुरुआत की एक बहुत ही रोचक कहानी है। कहानी इस तरह है कि सम्राट हर्षवर्धन के समय भिक्षु ह्वेनसांग उत्तर भारत का भ्रमण कर रहे थे और भ्रमण करते हुए उन्होंने हजारों बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन किया और विश्व के शिक्षा का महान केंद्र नालंदा महाविहार के प्रमुख आचार्य भी रहे, उन्होंने हजारों ग्रंथ अपने साथ एकत्रित किए और उन ग्रंथों चीनी भाषा में अनुवाद किया जब उन्हें लगा कि अब उन्हें वापस चीन लौटना चाहिए तब उन्होंने अपने वापस चीन लौटने की घोषणा कर दी। सम्राट हर्षवर्धन यह बात सुनकर काफी दुखी हुए और उन्होंने भिक्षु ह्वेनसांग से कुछ दिन और रुकने की याचना की। इस पर भिक्षु ह्वेनसांग ने कहा कि महाराज मैं कुछ दिन और रुक सकता हूं परंतु मेरी एक शर्त है, भिक्षु ने कहा कि यदि आप दान का आयोजन करें तो मैं 5 वर्ष और रुक सकता हूं। इस पर सम्राट हर्षवर्धन ने हामी भर दी और यही से महादान परंपरा की शुरुआत हुई और इसी दान के महापर्व को महादान पर्व कहा गया और बाद में इसे कुंभ मेला कहा जाने लगा। महादान पर्व की शुरुआत के बाद सम्राट हर्षवर्धन हर 5 वर्ष में पवित्र नदियों के किनारे आते और वहां पर अपना सबकुछ दान कर देते थे।
एक बार की बात है जब सम्राट हर्षवर्धन ने प्रयाग के गंगा यमुना के संगम तट पर अपना सब कुछ दान कर दिया और उनके पास अंग वस्त्र भी नहीं बचा तब उन्होंने अपनी बहन राज्यश्री से लेकर अंग वस्त्र धारण किया। प्रत्येक 5 वर्ष में सम्राट हर्षवर्धन प्रयाग आते और दानशीलता का पर्व जिसे महादान पर्व या महामोक्ष परिषद का आयोजन करते थे।
कैसे बदला महादान मेले का स्वरूप?

जिस समय सम्राट हर्षवर्धन के द्वारा महादान पर्व अर्थात आज का कुंभ मेला शुरू किया उस समय उन संप्रदायों की नींव भी नहीं रखी गई थी जो आज कुंभ मेले पर कब्जा जमाकर बैठे हैं अर्थात शैव और वैष्णव संप्रदाय जो कुंभ मेले के ठेकेदार बनकर बैठे हैं उनकी नींव बहुत बाद में रखी गई। शैव और वैष्णव संप्रदाय की शुरुआत 11वीं 12वीं सदी में हुई। सब और वैष्णव संप्रदाय की शुरुआत बौद्ध धर्म के महाविहारों और परंपराओं पर कब्जा कर हुई। बौद्ध धर्म की महायानी और तंत्रयानी शाखा की कुछ परंपराओं को लेकर इन संप्रदायों की स्थापना की गई।
जब मौलिक बौद्ध संप्रदाय अर्थात महायान संप्रदाय नाथ, सिद्ध एवं भक्ति परंपरा और कबीर, रैदास की संत परंपराओं में विभाजित हो गया उस समय ब्राह्मण संप्रदायों ने सभी प्रमुख बुद्ध विहारों और सभी प्रमुख बौद्ध पर्वों का स्वरूप बदलने शुरू कर दिया और यहीं से कुंभ मेला और देश के बड़े बुद्ध विहारों जो कि विश्व में शिक्षा के महान केंद्र माने जाते थे उनका स्वरूप बदलना शुरू हो गया और मूल बौद्ध संप्रदाय के लोगों को अंधेरे में रखकर ब्राह्मण संप्रदाय के लोगों उस समय के शासकों अर्थात तुर्क और मुगल राजाओं के साथ सांठ गांठ स्थापित कर भगवान बुद्ध की महान ज्ञान परंपरा को पाखंड की परंपरा में बदल दिया।
सम्राट अशोक महान का भी प्रयाग से अटूट नाता है…

सम्राट अशोक महान ने प्रयाग में एक स्तंभ स्थापित कराया था जो कि आज भी प्रयागराज किले में संरक्षित है। यहां सम्राट अशोक महान का एक शिलालेख भी है जिसमें बौद्ध धर्म और शासन को लेकर कई निर्देश और आदेश लिखे गए हैं। 
सम्राट अशोक महान के समय ही प्रयाग एक महान बौद्ध तीर्थ स्थल बन गया था जिसे बाद में सम्राट हर्षवर्धन ने महामोक्ष परिषद का आयोजन कर संस्कृति और ज्ञान का महान केंद्र बना दिया और महादान भूमि के रूप में प्रसिद्ध कर दिया।
बताया जाता है कि सम्राट अशोक महान ने यहां पर 100 फीट ऊंचा एक बौद्ध स्तूप भी बनाया था जो आज मौजूद नहीं है परंतु इतिहास में इसका भी बड़ा महत्व रहा है। मौर्य साम्राज्य के समय प्रयाग बौद्ध संस्कृति का एक महान केंद्र रहा और सम्राट अशोक महान ने इसे अपनी शासन की इकाइयों में शामिल किया।
प्रयाग बौद्ध धर्म का स्थल है, ब्राह्मण धर्म का नहीं…

उपरोक्त सभी तथ्य जानकर आपको जानकारी हो गई होगी की प्रयाग एक बौद्ध स्थल है और कुंभ मेला एक बौद्ध मिला है। ब्राह्मण गपौड़ कथाएं लिखकर भारत के इतिहास को बर्बाद करने का काम कर रहे हैं और उनकी काल्पनिक कथाएं यहां तक पहुंच चुकी है कि इतिहास के प्रमुख चीजों को बदलकर सभी भारतीयों को भटकाकर इतिहास के स्थलों और ऐतिहासिक पर्वों पर कब्जा जमाकर उन्हें खत्म कर रहे हैं। हमें सभी भारतीय पर्वों की ऐतिहासिकता खोजने और उन्हें उनके मूल स्वरूप में स्थापित करने की जरूरत है।

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Santosh Shakya
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संतोष शाक्य Indus News TV के सह-संपादक (Associate Editor) एवं चैनल के उत्तर प्रदेश & उत्तराखंड राज्य प्रमुख (UP/Uttarakhand State Head) हैं। संतोष शाक्य उत्तर प्रदेश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखण्ड यूनिवर्सिटी बरेली से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट हैं। विज्ञान के साथ इतिहास, सामाजिक विज्ञान, राजनीति, धम्म, दर्शन एवं अध्यात्म आदि संतोष शाक्य के पसंदीदा विषय हैं। इसके साथ संतोष शाक्य एक एंटरप्रेन्योर, मोटिवेशनल स्पीकर, लेखक, विचारक, पत्रकार, Life कोच, आध्यात्मिक शिक्षक भी हैं। जो मोटिवेशन, बिजनेस प्रमोशन, वेलनेस टॉक & Meditation के जरिए लोगों की मदद करते हैं। इसके साथ संतोष शाक्य एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी के संचालक भी हैं। संतोष शाक्य के द्वारा कवर की गयी प्रमुख स्टोरी एवं उनके लेख पढ़ने के लिए आप Indus News TV की वेबसाइट https://www.indusnewstv.com को लॉग-ऑन कर सकते हैं। संतोष शाक्य के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप उनकी वेबसाइट https://www.santoshshakya.com भी विजिट कर सकते हैं।
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