माघ पूर्णिमा का महत्व बता रही हैं भिक्खुनी साक्य धम्मदिन्ना
माघ पूर्णिमा भी वैशाख पूर्णिमा के समान ही विशेष पूर्णिमा है! इसी पावन दिन पर ही भगवान; मार सेना को आयु संस्कार त्याग देने का अंतिम वचन देते हुए कुछ यूं कहते हैं:
“अप्पोस्सुक्को त्वं, पापिम, होहि, न चिरं तथागतस्स परिनिब्बानं भविस्सति! इतो तिण्णं मासानं अच्चयेन तथागतो परिनिब्बायिस्सती”ति!”
अर्थात “पापी! बेफिक्र हो, न-चिर ही तथागत का परिनिर्वाण होगा! आज से तीन मास बाद तथागत परिनिर्वाणको प्राप्त होंगे!”
आम्रपाली की नगरी वैशाली में मार को वचन देने के पश्चात भगवान ने यह उदान कहा:
“तुलमतुलञ्च सम्भवं, भवसङ्खारमवस्सजि मुनि!
अज्झत्तरतो समाहितो, अभिन्दि कवचमिवत्तसम्भव”न्ति!!
अर्थात “तथागत ने अतुल-तुल उत्पन्न भव-संस्कार को त्याग दिया है, अपने भीतर ही रत और एकाग्र चित होकर तथागत ने अपने साथ उत्पन्न कवच को तोड़ दिया!!”
भगवान के आयु संस्कार त्यागने की घोषणा जैसे ही माता महाप्रजापति गौतमी अर्हंत थेरी जी को पता चली तो उनके मन में ऐसा उत्पन्न हुआ :
“बुद्धस्स परिनिब्बानं, सावकग्गयुगस्स वा।
राहुलानन्दनन्दानं, नाहं लच्छामि पस्सितुं॥
अर्थात “मैं बुद्ध का परिनिर्वाण नहीं देखना चाहती और न ही बुद्ध के मुख्य शिष्यों में से राहुल, आनंद, नंद का!”
“पटिकच्चायुसङ्खारं , ओसज्जित्वान निब्बुतिं।
गच्छेय्यं लोकनाथेन, अनुञ्ञाता महेसिना॥
अर्थात जीवन के सभी तत्वों को नष्ट करके और उन्हें छोड़ कर, मैं महामुनि, समस्त विश्व के शास्ता द्वारा अनुमति प्राप्त कर परिनिर्वाण को प्राप्त करूं!”
बोधिपक्खिय : बोधि के पंख……. (Importance of Magha Purnima)