असगर मेहंदी
8 मार्च 1736 को ईरान में सफ़वी वंश का ख़ात्मा और अफ़्शरियान वंश के शासन की शुरुआत हुई। इस वंश के शासन का संस्थापक नादिर शाह अफ़्शार (1688-1747) था जो, ईरान के तख़्त पर बैठा था। हम उसकी धार्मिक नीति पर संक्षिप्त चर्चा करेंगे। 16 वीं सदी में ईरान में सफ़वी वंश ने ईरान में राजसत्ता हासिल की। (Nadir Shah Afshar Iran)
यद्यपि इसका संस्थापक शाह इस्माइल सुन्नी था लेकिन उसने शिया मत को राज्य धर्म का दर्जा दिया। इसके सबसे बड़ी वजह उसमानी ख़िलाफ़त और उज़्बेकों की तरफ़ से ख़तरों का क़ायम रहना था। जिसके लिये ज़रूरी था कि जनता को जज़्बाती तौर पर रियासत से जोड़ा जाए और शाह इस्माइल की यह नीति सफल साबित रही।
व्यक्तिगत रूप से कहा जाता है कि नादिर शाह धर्म के प्रति उदासीन था और उसके निजी चिकित्सक के रूप में काम करने वाले फ्रांसीसी जेसुइट ने बताया कि यह जानना मुश्किल था कि वह किस धर्म का पालन करते था और शायद किसी भी मत में विश्वास नहीं करता था।(Nadir Shah Afshar Iran)
नादिर शाह ने ईरान के तख़्त ओ ताज सम्भालने के बाद पूर्व की धार्मिक नीति पर पुनर्विचार शुरू किया। उसे महसूस हुआ कि ईरान को अग्रेसिव शियत की अब क़तई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि उस्मानिया सल्तनत का क्षरण शुरू हो चुका था। इसके अलावा उसकी सेना में केवल शिया सैनिक नहीं थे बल्कि एक बड़ी तादाद में सुन्नी और ईसाइयों का मिश्रण शामिल था।
उसके अपने किज़िलबाश के साथ-साथ उज़्बेक, अफगान, जॉर्जियाई और अर्मेनियाई ईसाई और अन्य शामिल थे। नादिर शाह चाहता था कि कि ईरानी अवाम शिया मत का एक ऐसा रूप अपनायें जिसकी व्यापक स्वीकार्यता हो। उसने छठे इमाम जाफ़र अल-सादिक़ के सम्मान में ईरान के राजकीय धर्म का नाम “जाफ़री” रखा। इसके साथ उसने कुछ शिया प्रथाओं पर प्रतिबंध लगा दिया जो विशेष रूप से सुन्नियों के लिए आक्रामक महसूस की जाती थीं, जैसे कि पहले तीन खलीफाओं पर तबर्रा करना। (Nadir Shah Afshar Iran)
नादिर शाह को उम्मीद थी कि “जाफ़री स्कूल आफ़ थाट” को सुन्नी इस्लाम के पांचवें स्कूल (मज़हब) के रूप में स्वीकार कर लिया जाएगा और उसमानी सल्तनत अपने अधिकार क्षेत्र में स्थित मक्का-मदीना में ईरानियों को हज या तीर्थयात्रा पर जाने की अनुमति दे देगी। नादिर शाह के दबाव के बाद शांति वार्ताओं में, उसमानियों ने “जाफ़री स्कूल आफ़ थाट” को पांचवें मज़हब के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया, लेकिन उन्होंने ईरानी तीर्थयात्रियों को हज पर जाने की अनुमति दे दी।
यह सौदा भी नादिर शाह के लिये फ़ायदेमंद साबित हुआ क्योंकि तीर्थ यात्रा से प्राप्त होने वाले राजस्व के कारण उसकी ज़्यादा दिलचस्पी ईरानियों को हज पर जाने के अधिकार प्राप्त करने में थी। अपने धार्मिक सुधारों में नादिर शाह का प्राथमिक उद्देश्य सफ़ियों के प्रति सहानुभूति को और कमजोर करना था क्योंकि ईरान का शिया इस्लाम हमेशा इस राजवंश के समर्थन में एक प्रमुख तत्व रहा है। (Nadir Shah Afshar Iran)
नादिर शाह के बाद उसके वंश का पचास साल में शिराज़ा बिखर गया,,लेकिन 18 वीं सदी के अंत से इलाक़े में सभी मुस्लिम ताक़तें कमज़ोर हो चुकी थीं और उनकी धार्मिक नीतियों का कोई विशेष महत्व भी बाक़ी नहीं रहा था। यह अलग विषय है कि दो सौ साल बाद साम्राज्यवादियों ने कैसे इन प्रवृत्तियों को उभारने में सफलता हासिल कर ली?
(लोक माध्यम से साभार)