मुंगेर का जिक्र ह्यूयन सांग ने अपने यात्रा वृतांत में भी किया है। कहा जाता है की मुंगेर की स्थापना का श्रेय गुप्त बंश के राज्याओं को है। कलांतर में यह स्थल कभी बख्तियार खिलजी के अधिकार में भी रहा। यहाँ पर पुराने स्मारक और स्थलों को देखा जा सकता है। आगे चलकर मुंगेर को बंगाल के अंतिम नबाब मीर कासिम ने अपनी राजधानी बनाई। मुंगेर में गंगा नदी के तट पर बंगाल के अंतिम नबाब मीर कासिम के द्वारा बनवाया गया किला स्थित है। (Nagvanshi marks top hill)
मुंगेर का आधुनिक इतिहास
कहा जाता है की अंग्रेजों के शासन काल मने 1812 के आसपास मुंगेर एक पृथक प्रशासनिक केंद्र बना। आजादी के बाद इसी शहर में मुंगेर जिला मुख्यालय भी स्थित है। पहले मुंगेर लक्खी सराय , खगरिया, बेगूसराय तक फैला था. लेकिन बाद में यह मुंगेर से अलग जिला बन गया। मुंगेर आजादी के बाद से दिन-दूनी प्रगति के पथ पर अग्रसर है। यहाँ के जमालपुर में भारत के प्रसिद्ध रेल कारखाना हैं। आज मुंगेर से खगरिया के बीच गंगा नदी पर रेल पूल का निर्माण होने से मुंगेर का सीधा संबंध उतरी बिहार से हो गया है। (Nagvanshi marks top hill)
मुंगेर के किले का इतिहास
मुंगेर किला का इतिहास भी पुराना है। यह किला बिहार का ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है। यह किला मीरकासिम का प्रसिद्ध किला के रूप में जाना जाता है। इस किले का निर्माण बंगाल के अंतिम नवाब मीर कासिम ने किया था। कहते हैं की सन 1934 के अति विनाशकारी भूकम्प से यह किला ध्वस्त हो गया। लेकिन इस किले के अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं। चार द्वार वाला यह किला वास्तुकला की दृष्टि से बहुत ही सुंदर है।
इस किले के प्रमुख दरवाजा लाल दरवाजा के नाम से जाना जाता है। इस कीले में निर्मित सुरंग भी पर्यटक को बेहद आकर्षित करता है। कहते हैं की इस सुरंग का दूसरा रास्ता गंगा की तरफ खुलता है। कहा जाता है की इसी सुरंग के रास्ते मीर कासिम ने अंग्रेजों से युद्ध के दौरन अपनी जान बचाई थी। यह सुरंग कितना लंबा है, कहाँ तक जाता है यह बात आज भी रहस्य बना हुआ है। (Nagvanshi marks top hill)