ओमपुरी- एक्टिंग का एक युग
– वीर विनोद छाबड़ा
ओमपुरी को गुज़रे चार साल हो गए हैं मगर वो जब तब याद आते हैं उन्हें याद करने का कारण उनकी एक्टिंग ही नहीं सम्पूर्ण व्यक्तित्व दो राय नहीं कि वो बेहतरीन एक्टर थे. ज़मीनी एक्टर थे हालांकि उन्होंने फिल्म इंस्टिट्यूट से और फिर नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से एक्टिंग सीखी थी, लेकिन मेरे ख्याल से अगर न भी सीखते तब भी इतने ही बढ़िया एक्टर होते। (Ompuri Miss you so much)
उन्हें एक्टिंग के लिए कभी मेहनत नहीं करनी पड़ी जीवन के हर रंग को बहुत सहजता से जिया नेचुरल आर्टिस्ट एक्टिंग मानों खून में बहती थी, अर्ध्यसत्य और आरोहण के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का नेशनल अवार्ड मिला था इसके अलावा भी उन्हें कई नेशनल और इंटरनेशनल अवार्ड मिले 2009 में फ़िल्मफ़ेयर ने उन्हें लाइफ़टाईम अवार्ड दिया।
भूमिका, गाँधी, विजेता, नरसिम्हा, घायल माचिस, चाईना गेट, गद्दार-एक प्रेम कथा आदि दर्जनों फिल्मों में शानदार एक्टिंग की भीष्म साहनी के उपन्यास पर आधारित गोविंद निहलानी की टीवी फिल्म ‘तमस’ में ओमपुरी की परफॉरमेंस को भला कौन भूल सकता है, किरदार की खाल में इस कदर घुस गए थे कि अलग करना मुश्किल हो गया था मुझे नहीं लगता कि कोई अन्य बड़े से बड़ा एक्टर इतने परफेक्शन के साथ इस किरदार को कर पाता। (Ompuri Miss you so much)
याद करिये ‘प्यार तो होना ही था’ का इंस्पेक्टर खान और आखिर में कहना, हर आदमी को ज़िन्दगी में एक बार प्यार ज़रूर करना चाहिए, प्यार आदमी को अच्छा इंसान बना देता है ओह माई गॉड में उनका यादगार संवाद – मज़हब इंसान के लिए बनता है, मज़हब के लिए इंसान नहीं बनता कुर्बान में उन्होंने कहा था – यकीन को हमेशा वक़्त से पीछे चलना चाहिए आगे नहीं चाइनागेट में पते की बात कही थी जंग कोई भी हो नतीजा कुछ भी हो एक सिपाही अपना कुछ न कुछ खो ही देता है।
मेरे ख्याल से कॉमेडी करना सबसे मुश्किल काम है और जब उसे एक ज़हीन एक्टर करता है तो बात ही कुछ और होती है इसीलिये ओमपुरी मुझे जाने भी दो यारों, चाची 420, कुंवारा, हेरा-फेरी, दुल्हन हम ले जायेंगे आवारा पागल दीवाना, चोर मचाये शोर, दीवाने हुए पागल, मालामाल वीकली, चुप चुप के, ढोल, मेरे बाप पहले आप, सिंग इज़ किंग, बिल्लू में ओमपुरी सबसे बेहतरीन एक्टर दिखे।
कैसी भी फिल्म रही हो और कैसा भी रोल रहा हो चाहे छोटा या बड़ा उन्होंने अपनी हाज़िरी ज़रूर दर्ज कराई उन्होंने एक जैसे रोल नहीं किये विविधता थी उनकी एक्टिंग में मेरे विचार से वो सदी के महानायक से भी आगे थे किरदार के हिसाब से उनका पंजाबी लहज़ा बहुत ज़ोरदार था चन परदेसी, लौंग दा लश्कारा आदि कुछ पंजाबी फिल्मों में भी काम किया उन्होंने देव, लक्ष्य, घातक में उन्होंने सदी के महानायक को भी कड़ी टक्कर दी। (Ompuri Miss you so much)
उनके चाहने वालों को हमेशा शिकायत रही कि उनके अंदर इतना ज्यादा टैलेंट था कि डायरेक्टर उसे क़ायदे से एक्सप्लोर नहीं कर सके शायद इसके लिए ओमपुरी कुछ हद तक खुद भी ज़िम्मेदार थे उनकी निजी ज़िंदगी में बहुत उथल-पुथल रही इसका प्रभाव कैरियर पर भी पड़ा पहली पत्नी सीमा से हुई शादी महज़ आठ महीने चली फिर नंदिता से विवाह किया।
नंदिता ने उन पर एक किताब लिखी, Unlikely Hero – The story of Om Puri
इसमें उनकी निजी ज़िंदगी और पराई महिलाओं के साथ संबंधों के बारे में ज़िक्र था, ओमपुरी इस पर बहुत नाराज़ हुए उन्होंने नंदिता को बहुत बुरा-भला कहा नंदिता ने पुलिस में मार-पीट की रपट भी लिखवाई बाद में आपसी सहमति से दोनों में तलाक भी हो गया ओमपुरी पॉलिटिशियन नहीं थे लेकिन अक्सर विवादास्पद बयानों के कारण उन्हें परेशानी झेलनी पड़ी अन्ना आंदोलन के दौरान वो दारू पीकर स्टेज पर पहुँच गए थे उन्हें बहुत बेइज्जत होना पड़ा। (Ompuri Miss you so much)
कुछ भी हो ओमपुरी के न होने का अर्थ है एक्टिंग के एक युग का अंत, हम उन्हें एक बेहतरीन ज़मीनी एक्टर के रूप में याद रखेंगे।