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Wednesday, April 30, 2025
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हिन्दी सिनेमा के ग्रेट शोमैन राज कपूर साहब

दिलीप कुमार पाठक


ग्रेट शो मैन स्वर्गीय  राज कपूर साहब आज निन्यानवे वर्ष की उम्र हो जाने के बाद इस भी सिल्वर स्क्रीन सहित भारत ही नहीं वैश्विक सिने प्रेमियों के दिलों में धड़कते हैं. राज कपूर साहब की सिनेमाई यात्रा अभूतपूर्व रही है. मेरा जूता है जापानी, यह पतलून इंग्लिश्तानी, सर पे लाल टोपी फिर भी दिल है हिंदुस्तानी”सुनते ही हमारे जहन में राज कपूर साहब की तस्वीरें जेहन में झूलने लगती हैं. (Raj Kapoor great showman)

हिन्दी सिनेमा के ग्रेट शोमैन केवल एक अभिनेता नहीं थे, आज वो किसी के लिए महान फ़िल्मकार हैं, तो किसी के लिए गोल्डन एरा की एक महान कड़ी, किसी के लिए नायाब संगीत का निर्माण करवाने वाले महान संगीतकार, किसी के लिए बेस्ट कथानक, किसी के लिए महान रंगकर्मी, राज कपूर साहब की सिनेमाई यात्रा इतनी अबूझ रही है, कि पूरी तरह विमर्श करना मुमकिन नहीं है.

राज कपूर आज ही के दिन 14 दिसंबर, 1924 को अविभाज्य पेशावर में जन्मे. राज कपूर के पिता पृथ्वी राज कपूर एक जाने माने थियेटर आर्टिस्ट और फिल्म कलाकार थे.पृथ्वी राज कपूर के बेटे ही क्या समस्त कपूर खानदान आज अभिनय की दुनिया में एक बड़ा नाम है. महज 24 साल की उम्र में ही राज कपूर ने अपना प्रोडक्शन स्टूडियो ‘आर के फिल्म्स’ शुरू कर दिया था. उस समय वे फिल्म इंडस्ट्री के सबसे यंग निर्देशक थे. 28 साल की उम्र में ही महानतम फ़िल्मकार के रूप में स्थापित हुए. हिन्दी सिनेमा में शो-मैन का खिताब हासिल कर लिया था. (Raj Kapoor great showman)

1951 में बनी उनकी फिल्म ‘आवारा’ को हिन्दी सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है. एक महान कलाकार होने के साथ ही राज कपूर संगीत की भी अच्छी समझ रखते थे. उन्होंने अपनी फिल्मों में संगीत पक्ष को भी काफी महत्व दिया. उनकी फिल्मों का गीत संगीत आज भी लोगों की जुबां से नहीं उतरा है. राज कपूर खुद भी वायलिन, पियानो, मेंडोलिन और तबला बजाना जानते थे. अपनी मेहनत, लगन और टैलेंट से राज कपूर ने एक से बढ़कर एक बेहतरीन फिल्में देकर कपूर खानदान के नाम को काफी ऊंचाइयों पर पहुंचाया.

राजकपूर साहब आजाद भारत से पहले के दूरदर्शी फ़िल्मकार फिल्मकार अभिनेता थे, आजादी के बाद देश के सामने गरीबी, बेरोजगारी, जातिवाद, स्त्रियों की दुर्दशा, शहरों की तरफ पलायन, सांप्रदायिकता जैसी गंभीर समस्याओं से समाज बजबजा रहा था. जिसको इसकी पूर्णता जानकारी भी नहीं थी, अभी ही आजाद हुआ हिन्दी सिनेमा अपनी चेतना भी जागृत नहीं कर सका था. स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों गांधी, पटेल और नेहरू और अंबेडकर के आदि टॉर्च की रोशनी में देश आगे बढ़ने का ख्वाब देख रहा था. जिनके सामने राष्ट्र निर्माण का लक्ष्य था. (Raj Kapoor great showman)

गांधी-नेहरू के आदर्शों से प्रेरित समाजवादी राष्ट्र निर्माण के लिए ग्रेट राजकपूर साहब ने जनसरोकार से सिनेमा को जोड़ कर, व्यपारिक सिनेमा के लिए खुल रहे दरवाजे को हमेशा के लिए बंद कर दिया था. आज चाहे सिल्वर स्क्रीन पैसे की जरूरत के हिसाब से चमकती हो, लेकिन ग्रेट राज कपूर साहब ने आम आदमी का सिनेमा बनाकर जिस भोलेपन, मासूमियत, सादगी का अपने अभिनय में समन्वय कर सिल्वर स्क्रीन पर प्रस्तुत किया वह हिन्दी सिनेमा की महान उपलब्धि है.भारतीय सिनेमा के इतिहास में राजकपूर साहब ग्रेट शोमैन के रूप में याद किए जाएंगे.

राज कपूर साहब को यथार्थवादी सिनेमा का अग्रदूत कहा जाता है, हिन्दी सिनेमा को कल्पना से बाहर निकालकर सच्चाई, को पर्दे पर उकेरने पर उनकी मासूमियत, सादगी ऐसी थी, कि दर्शकों को अपने प्रवाह में बहा ले जाती थी. असल ज़िन्दगी की घटनाओं को पर्दे पर उतारने में राज कपूर साहब का कोई सानी नहीं था. नरगिस जी के साथ अपनी पहली मुलाकात को आजीवन भूल नहीं सके.

राज कपूर साहब नरगिस जी की माँ जद्दन बाई से मिलने गए. राज कपूर साहब ने दरवाज़ा खटखटाया पकौड़े तल रहीं नरगिस जी ने घर का दरवाजा खोला, बाद में राज कपूर साहब को दरवाजे पर देखकर शर्म से लाल हो गईं, उन्होंने शर्म से अपना हाथ अपने सर पर रखा, जिससे हाथों में लगा बेसन उनके बालों में लग गया था. इस हसीन मुलाकात को राज कपूर साहब ने अपनी फिल्म बॉबी में दशकों बाद इस सीन पर उतार दिया था. कहते हैं सृजनात्मक आदमी हर स्थिति में कुछ न कुछ रचता ही रहता है, या उसका दृष्टिकोण हावी रहता है. (Raj Kapoor great showman)

आजादी के बाद मजरुह सुल्तानपुरी ने पंडित नेहरू के लिए लिख दिया था,

मन में जहर डॉलर के बसा के

फिरती है भारत की अहिंसा

खादी के केंचुल को पहनकर

ये केंचुल लहराने न पाए

अमन का झंडा इस धरती पर

किसने कहा लहराने न पाए

ये भी कोई हिटलर का है चेला

मार लो साथ जाने न पाए

कॉमनवेल्थ का दास है नेहरू

मार ले साथी जाने न पाए

यह रचना लिखकर महान गीतकार मजरुह सुल्तानपुरी साहब जब जेल चले गए, तो उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई. राज कपूर साहब भावनात्मक इंसान थे. जेल में मिलने गए. मजरुह सुल्तानपुरी साहब से अनुरोध किया कि मैं आपकी कुछ अर्थिक मदद करना चाहता हूं. मजरुह सुल्तानपुरी साहब खुद्दार इंसान थे, उन्होंने राज कपूर साहब से कहा कि मैं ऐसे ही पैसे नहीं ले सकता, तो राज कपूर साहब ने ने कहा एक गीत लिख दीजिए. अगले दिन राज कपूर साहब पहुंचे मजरुह सुल्तानपुरी साहब को एक पेन दे दिया. मजरुह सुल्तानपुरी साहब ने रात में ही गीत की शब्दावली तैयार कर रखी थी. आख़िरकार मजरुह सुल्तानपुरी साहब ने एक कालजयी गीत जेल में ही लिख दिया. उसके बोल थे, (Raj Kapoor great showman)

एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल

जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल

इस गीत को राज कपूर साहब ने लगभग 30 साल बाद अपनी फिल्म में उपयोग किया, तब तक उस गीत को संभाल कर रखा था. राज कपूर साहब की सिनेमाई समझ को समझना आसमान के तारे गिनने के समान है.

राज कपूर बहुत ज्यादा प्रयोग करने वाले फ़िल्मकार थे. 1970 के अंत में राज कपूर ने अपने समय की सबसे महँगी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ का निर्माण किया. राज कपूर के जीवन की सबसे महत्त्वाकांक्षी फिल्म थी, लेकिन उम्मीद के मुताबिक ‘मेरा नाम जोकर’ बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली. इस फिल्म में दो इंटरवल थे, बिग बजट फिल्म से राज कपूर साहब को काफी उम्मीदें थीं, इस फिल्म के साथ ही राज कपूर ने बतौर अभिनेता फिल्मों से विदा ले ली. ‘मेरा नाम जोकर’ के न चलने से राज कपूर काफी आर्थिक दबाव में आ गए थे. ऐसा लगने लगा था कि राज कपूर नामक अध्याय खत्म हो गया है. आख़िरकार राज कपूर साहब को सबसे महान शोमैन क्यों कहा जाता है, बॉबी फिल्म उसकी बानगी है. (Raj Kapoor great showman)

राज कपूर साहब ने हार नहीं मानी और एक बार फिर उठने की कोशिश में अपने बेटे ऋषि कपूर और डिम्पल कपाड़िया को लेकर किशोरावस्था प्रेम कहानी फिल्म ‘बॉबी’ बनाई सुपरहिट फिल्म साबित हुई, राज कपूर साहब के लिए ही नहीं हिन्दी सिनेमा की कालजयी फिल्म मानी जाती है. इसी फिल्म से राज कपूर साहब की सारी आर्थिक समस्याओं को खत्म कर दिया था. इसके साथ ही फिल्म इंडस्ट्री को ऋषि कपूर के रूप में एक नायाब अभिनेता मिला. इसके बाद राज कपूर ने कुछ और भी बेहतरीन फिल्में बनाई.

सत्यम शिवम सुन्दरम, प्रेम रोग और राम तेरी गंगा मैली जैसी फ़िल्मों का निर्माण करने के बाद उनको ऑल टाइम फेवरेट फ़िल्मकारों में शुमार करा दिया. राज कपूर साहब को बॉबी की सफलता ने परेशान कर दिया था, उनको इस फिल्म के बनाने के बाद बहुत आलोचना झेलनी पड़ी, लेकिन बाद में राज कपूर साहब ने कहा था, कि गिरता हुआ, सामाजिक स्तर महसूस किया जा सकता है. मैंने बॉबी फिल्म बनाकर ‘मेरा नाम जोकर’ जैसी कल्ट फ़िल्मों को नकारने का बदला लिया था. (Raj Kapoor great showman)

आवारा फिल्म की दीवानगी भारत सहित पूरी दुनिया में थी. आवारा फिल्म को राज कपूर की सिग्नेचर फिल्म कह सकते हैं. राज कपूर साहब ने आवारा, जिस देश में गंगा बहती है, श्री 420, मेरा नाम जोकर, आवारा, बरसात, तीसरी कसम, अंदाज़, आदि फ़िल्मों के बाद, बॉबी, राम तेरी गंगा मैली, जैसी आधुनिक फ़िल्में बनाकर जन सरोकार से लेकर आधुनिक दौर को जिया. आर के स्टूडियो, के प्रमुख सदस्यों, शंकर – जय किशनजी, शैलेन्द्र जी, मुकेश जी, हसरत जयपुरी जैसे दिग्गजों को राज कपूर साहब के बिना याद करना बेमानी है.

आजादी से पहले निर्माण हो रहे आधुनिक युग तक राज कपूर साहब त्रिमूर्ति देवानंद साहब, दिलीप साहब, के साथ अमरत्व प्राप्ति करने तक पर्दे पर चमकते रहे. दिलीप साहब की शादी में दिलीप साहब के अगल – बगल देव साहब एवं राज कपूर चल रहे थे. घुटनों के बल नाचते हुए राज कपूर तीनों की महान दोस्ती का दस्तावेज है. हिन्दी सिनेमा के महान राज कपूर साहब ने अपने मित्र महान गायक मुकेश जी के शव की अगवानी करते हुए राजेन्द्र कुमार से बोले कि मेरा मित्र यात्री की तरह विदेश गया था, लगेज की तरह लौटा. मैं भी ऐसे ही मृत्यु चाहता हूं, महान राज कपूर साहब दादा साहब फाल्के पुरूस्कार से सम्मानित होने के लिए दिल्ली आए, ऑडिटोरियम में ही अचेत हो गए. (Raj Kapoor great showman)

(लोक माध्यम से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं।)


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