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Wednesday, April 30, 2025
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भारत की सबसे कम उम्र की जासूस थीं सरस्वती राजामणि

साल 1937 में जब गाँधी बर्मा दौरे पर थे तो वहां उनकी मुलाक़ात रंगून के सबसे धनी परिवारों में से एक से हुई. परिवार के सदस्यों से परिचय के दौरान गांधी 10 साल की राजामणि से बहुत प्रभावित हुए. वह बच्ची गाँधी को अंग्रेजों को मार भगाने के अपने विचार के बारे में बता रही थी. यही राजामणि चौधरी आगे चलकर आजादी के आन्दोलन की नायिका बनीं बल्कि उन्हें भारत की सबसे कम उम्र की जासूस के तौर पर भी जाना जाता है. (Saraswati Rajamani was India’s Youngest Spy)

11 जनवरी 1927 को रंगून में जन्मी राजामणि का परिवार तमिलनाडु का रहने वाला था और स्वतंत्रता आन्दोलन का समर्थन करता था. इसी वजह से जब परिवार पर गिरफ्तारी का खतरा था तो वह बर्मा चला गया.

जब राजामणि 16 बरस की थीं तो रंगून में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के एक भाषण से प्रेरित होकर उन्होंने अपने गहने उन्हें दान कर दिए. दरअसल नेताजी आज़ाद हिंद फ़ौज के लिए फंड इकठ्ठा कर रहे थे. एक बच्ची के इस भाव से प्रभावित होकर उनके गहने ले तो लिए गए लेकिन दूसरे दिन नेताजी खुद इन्हें लौटाने के लिए उनके घर पहुंच गए. वहां राजामणि ने इन गहनों को वापस लेने से इनकार तो किया ही उनके पिता ने भी उन्हें ऐसा करने के लिए शाबाशी दी.

इस बात से प्रभावित होकर बोस ने राजामणि के नाम के आगे सरस्वती लगा दिया और जल्द ही वे आज़ाद हिंद फ़ौज का हिस्सा बन गयीं. सरस्वती राजामणि की शुरुआत बेसिक मेडिकल ट्रेनिंग के बाद सैनिकों की मरहमपट्टी करने से हुई. जल्द ही वे झाँसी की रानी रेजिमेंट का हिस्सा बन गयीं. राजामणि सेना के जासूसी विभाग का हिस्सा बन गयीं और उन्हें कलकत्ता भेज दिया गया. यहां उन्होंने आईएनए के लिए कई महत्वपूर्ण सुराग जुटाए, उन्होंने ही 1943 में अंग्रेजों द्वारा बोस की हत्या के लिए बनायी जा रही योजना की जानकारी इकठ्ठा की.

भेष बदलने में कुशल राजामणि ने अंग्रेजों की कई खुफिया जानकारियां हासिल कीं. एक बार जब उनका सहयोगी अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिया गया तो उन्होंने नृतकी का वेश धारण कर उसे मुक्त कराया. इस दौरान वे अंग्रेजों की गोली का शिकार होने के बावजूद भाग निकलने में कामयाब हुईं. इस दौरान उन्हें बगैर इलाज के भूखे प्यासे समय काटना पड़ा. आखिर तीन दिन बाद वे आज़ाद हिंद फ़ौज के कैम्प पहुंची. इस चोट की वजह से उन्हें आगे का समय लंगड़ाते हुए बिताना पड़ा. उन्हें झांसी की रानी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट के रैंक से नवाजा गया.

1957 में  आज़ाद भारत में राजामणि का परिवार वापस भारत लौटा. परिवार को अपनी संपत्ति गंवानी पड़ी. भारत सरकार की उपेक्षा की वजह से राजामणि को आगे का जीवन चेन्नई के एक कमरे के मकान में विपन्नता से बिताना पड़ा. साल 2005 में जयललिता ने उन्हें एक घर दिया.

Saraswati Rajamani Youngest Spy

वृद्ध राजामणि के भीतर से राष्ट्सेवा का भाव कभी नहीं गया. वे दर्जियों के दुकानों से बचे कपड़े इकठ्ठा कर उसके वस्त्र बनाकर अनाथालय व् वृद्धाश्रम में दे देतीं. 2006 की सुनामी में उन्होंने अपनी पेंशन इसके रिलीफ फंड में दान कर दी.  

2018 में अपनी मृत्यु से पहले वे आज़ाद हिंद फ़ौज की अपनी वर्दी, बिल्ले, मेडल आदि भी कटक, उड़ीसा के सुभाष चन्द्र बोस म्यूजियम को दान कर गयीं.    

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