उर्दू में लिखी गई देशभक्ति रचनाओं में शायद सबसे अधिक प्रसिद्ध यह रचना अल्लामा इक़बाल साहब ने बच्चों के लिए लिखी थी। यह सबसे पहले 16 अगस्त 1904 को इत्तेहाद नामक साप्ताहिक पत्रिका में प्रकाशित हुई और बाद में इक़बाल साहब के बांग-ए-दरा नामक संग्रह में तराना-ए-हिन्दी शीर्षक से शामिल की गई. (compositions of Mohammad Iqbal)
1. सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा
ग़ुर्बत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा
परबत वह सबसे ऊँचा, हम्साया आसमाँ का
वह संतरी हमारा, वह पासबाँ हमारा
गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ
गुल्शन है जिनके दम से रश्क-ए-जनाँ स्वर्ग का प्रतिस्पर्धी हमारा
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! गंगा का बहता पानी वह दिन हैं याद तुझको?
उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा (compositions of Mohammad Iqbal)
मज़्हब नहीं सिखाता धर्म आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोसिताँ हमारा
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा यूनान, मिस्र और रोम सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-व-निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा (compositions of Mohammad Iqbal)
इक़्बाल! कोई महरम परिचित अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ छिपा हुआ दु:ख हमारा!
2. तस्कीन तसल्ली न हो जिस से वो राज़ बदल डालो
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो
तुम ने भी सुनी होगी बड़ी आम कहावत है
अंजाम का जो हो खतरा आगाज़ शुरुआत बदल डालो
पुर-सोज़ दु:खी दिलों को जो मुस्कान न दे पाए
सुर ही न मिले जिस में वो साज़ बदल डालो (compositions of Mohammad Iqbal)
दुश्मन के इरादों को है ज़ाहिर अगर करना
तुम खेल वो ही खेलो, अंदाज़ बदल डालो
ऐ दोस्त! करो हिम्मत कुछ दूर सवेरा है
गर चाहते हो मंजिल तो परवाज़ उड़ान बदल डालो
3. लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शमा की सूरत दीपक की भाँति हो ख़ुदाया मेरी
दूर दुनिया का मेरे दम से अँधेरा हो जाये
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये
हो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत शोभा
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत
ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब
इल्म की शम्मा ज्ञान का दीपक से हो मुझको मोहब्बत या रब
हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत सहानुभूति करना
दर्द-मंदों से ज़इफ़ों दुर्बल से मोहब्बत करना
मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको
4. सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
हाय क्या अच्छी कही ज़ालिम हूँ मैं जाहिल हूँ मैं
है मेरी ज़िल्लत ही कुछ मेरी शराफ़त की दलील
जिस की ग़फ़लत को मलक रोते हैं वो ग़ाफ़िल हूँ मैं
बज़्म-ए-हस्ती अपनी आराइश पे तू नाज़ाँ न हो
तू तो इक तस्वीर है महफ़िल की और महफ़िल हूँ मैं
ढूँढता फिरता हूँ ऐ “इक़बाल” अपने आप को
आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं
5. लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिन्द
सब फ़लसफ़ी हैं ख़ित्त-ए-मग़रिब के राम-ए-हिन्द
ये हिन्दियों के फ़िक्र-ए-फ़लक रस का है असर
रिफ़त में आसमाँ से भी ऊँचा है बाम-ए-हिन्द
इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त
मशहूर जिन के दम से है दुनिया में नाम-ए-हिन्द
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज
अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिन्द
एजाज़ इस चिराग़-ए-हिदायत का है यही
रोशन तर अज सहर है ज़माने में शाम-ए-हिन्द
तलवार का धनी था, शुजाअत में फ़र्द था
पाकिज़गी में, जोश-ए-मोहब्बत में फ़र्द था