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Thursday, May 1, 2025
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राजकमल चौधरी की कुछ रचनाएं

तुम मुझे क्षमा करो

बहुत अंधी थीं मेरी प्रार्थनाएँ।
मुस्कुराहटें मेरी विवश
किसी भी चंद्रमा के चतुर्दिक
उगा नहीं पाई आकाश-गंगा
लगातार फूल- (Some creations Rajkamal Chowdhary)

चंद्रमुखी!
बहुत अंधी थीं मेरी प्रार्थनाएँ।
मुस्कुराहटें मेरी विकल
नहीं कर पाई तय वे पद-चिन्ह।
मेरे प्रति तुम्हारी राग-अस्थिरता,
अपराध-आकांक्षा ने
विस्मय ने-जिन्हें,

काल के सीमाहीन मरुथल पर
सजाया था अकारण, उस दिन
अनाधार।
मेरी प्रार्थनाएँ तुम्हारे लिए
नहीं बन सकीं
गान,
मुझे क्षमा करो। (Some creations Rajkamal Chowdhary)

मैं एक सच्चाई थी
तुमने कभी मुझको अपने पास नहीं बुलाया।
उम्र की मखमली कालीनों पर हम साथ नहीं चले
हमने पाँवों से बहारों के कभी फूल नहीं कुचले
तुम रेगिस्तानों में भटकते रहे
उगाते रहे फफोले
मैं नदी डरती रही हर रात!

तुमने कभी मुझे कोई गीत गाने को नहीं कहा।
वक़्त के सरगम पर हमने नए राग नहीं बोए-काटे
गीत से जीवन के सूखे हुए सरोवर नहीं पाटे
हमारी आवाज़ से चमन तो क्या
काँपी नहीं वह डाल भी, जिस पर बैठे थे कभी! (Some creations Rajkamal Chowdhary)

तुमने ख़ामोशी को इर्द-गिर्द लपेट लिया
मैं लिपटी हुई सोई रही।
तुमने कभी मुझको अपने पास नहीं बुलाया
क्योंकि, मैं हरदम तुम्हारे साथ थी,
तुमने कभी मुझे कोई गीत गाने को नहीं कहा

क्योंकि हमारी ज़िन्दगी से बेहतर कोई संगीत न था,
(क्या है, जो हम यह संगीत कभी सुन न सके!)
मैं तुम्हारा कोई सपना नहीं थी, सच्चाई थी! (Some creations Rajkamal Chowdhary)

इस अकाल बेला में

होश की तीसरी दहलीज़ थी वो
हाँ ! तीसरी ही तो थी,
जब तुम्हारी मुक्ति का प्रसंग
कुलबुलाया था पहली बार
मेरे भीतर
अपनी तमाम तिलमिलाहट लिए

दहकते लावे-सा
पैवस्त होता हुआ
वज़ूद की तलहट्टियों में
फिर कहाँ लाँघ पाया हूँ
कोई और दहलीज़ होश की (Some creations Rajkamal Chowdhary)

सुना है,
ज़िन्दगी भर चलती ज़िन्दगी में
आती हैं
आठ दहलीज़ें होश की
तुम्हारे “मुक्ति-प्रसंग” के
उन आठ प्रसंगों की भाँति ही

सच कहूँ,
जुड़ तो गया था तुमसे
पहली दहलीज़ पर ही
अपने होश की,
जाना था जब
कि दो बेटियों के बाद उकतायी माँ
गई थी कोबला माँगने
एक बेटे की खातिर
उग्रतारा के द्वारे
कैसा संयोग था वो विचित्र ! (Some creations Rajkamal Chowdhary)

विचित्र ही तो था
कि पुत्र-कामना ले गई थी माँ को
तुम्हारे पड़ोस में
तुम्हारी ही “नीलकाय उग्रतारा” के द्वारे
और जुड़ा मैं तुमसे
तुम्हें जानने से भी पहले
तुम्हें समझने से भी पूर्व

वो दूसरी दहलीज़ थी
जब होश की उन अनगिन बेचैन रातों में
सोता था मैं
सोचता हुआ अक्सर
“सुबह होगी और यह शहर
मेरा दोस्त हो जाएगा”
कहाँ जानता था
वर्षों पहले कह गए थे तुम
ठीक यही बात
अपनी किसी सुलगती कविता में (Some creations Rajkamal Chowdhary)

और जब जाना,
आ गिरा उछल कर सहसा ही
तीसरी दहलीज़ पर
फिर कभी न उठने के लिए

इस “अकालबेला में”
खुद की “आडिट रिपोर्ट” सहेजे
तुम्हारे प्रसंगों में
अपनी मुक्ति ढूँढ़ता फिरता
कहाँ लाँघ पाऊँगा मैं
कोई और दहलीज़
अब होश की

नींद में भटकता हुआ आदमी

नींद की एकान्त सड़कों पर भागते हुए आवारा सपने ।
सेकेण्ड-शो से लौटती हुई बीमार टैक्सियाँ,
भोथरी छुरी जैसी चीख़ें
बेहोश औरत की ठहरी हुई आँखों की तरह रात ।
बिजली के लगातार खम्भे पीछा करते हैं;

साए बहुत दूर छूट जाते हैं
साए टूट जाते हैं ।
मैं अकेला हूँ ।
मैं टैक्सियों में अकारण खिलखिलाता हूँ,
मैं चुपचाप फुटपाथ पर अन्धेरे में अकारण खड़ा हूँ । (Some creations Rajkamal Chowdhary)

भोथरी छुरी जैसी चीख़ें
और आँधी में टूटते हुए खुले दरवाज़ों की तरह ठहाके
एक साथ
मेरे कलेजे से उभरते हैं
मैं अन्धेरे में हूँ और चुपचाप हूँ ।
सतमी के चाँद की नोक मेरी पीठ में धँस जाती है ।

मेरे लहू से भीग जाते हैं टैक्सियों के आरामदेह गद्दे
फुटपाथ पर रेंगते रहते हैं सुर्ख़-सुर्ख़ दाग़ ।
किसी भी ऊँचे मकान की खिड़की से
नींद में बोझिल-बोझिल पलकें
नहीं झाँकती हैं ।
किसी हरे पौधे की कोमल, नन्हीं शाखें,
शाखें और फूल,
फूल और सुगन्धियाँ
मेरी आत्मा में नहीं फैलती हैं । (Some creations Rajkamal Chowdhary)

टैक्सी में भी हूँ और फुटपाथ पर खड़ा भी हूँ।
मैं सोए हुए शहर की नस-नस में
किसी मासूम बच्चे की तरह, जिसकी माँ खो गई है,
भटकता रहता हूँ;
(मेरी नई आज़ादी और मेरी नई मुसीबतें… उफ़ !)
चीख़ और ठहाके
एक साथ मेरे कलेजे से उभरते हैं। (Some creations Rajkamal Chowdhary)


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