वह अमीरों को लूटता और लूट के माल का एक हिस्सा गरीबों में बाँट देता. वह छोटे दुकानदारों से समान ख़रीदता तो उन्हें दोगुना दाम चुकाता. वह अपने मुंह में चाकू छिपा सकता था और वक़्त आने पर उसका बखूबी इस्तेमाल भी कर सकता था. वह डकैती डालने से पहले लूटे जाने वाले परिवार को बाकायदा चिठ्ठी भेजकर अपने आने की इत्तला कर दिया करता था. जब वह डाका डालने पहुँचता तो घर और खजाने का मालिक उसे तिजोरी की चाभी सौंप देता, क्योंकि सबको पता था वह लूट का जितना माल ले जाने आया है उससे ज्यादा हरगिज नहीं लेगा. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश से लेकर पंजाब तक डकैती डालने वाले इस डकैत को चप्पे-चप्पे पर पुलिस खोजती रहती मगर वो कभी हाथ न आता. क्योंकि उसे मसीहा मानने वाले गरीब लोग हर ख़बर उस तक पहुंचाया करते थे. सरकार और पुलिस के लिए वह डकैत था लेकिन गरीब उसे ऐसा शख्स मानते थे जो अपने दोनों हाथ में गरीबों के लिए सौगातें लिए घोड़े पर घूमता रहता. सुलतान सिंह उर्फ़ सुल्ताना डाकू के बारे में यह भी कहा जाता था कि उसने जिंदगी भर एक भी क़त्ल नहीं किया. ये और बात है कि अंग्रेजों ने लामाचौड़ के ग्राम प्रधान के कारिंदे की हत्या के आरोप में उसे फांसी पर लटकाया. अपने जीते जी दंत कथाओं का हिस्सा बन चुका सुल्ताना डाकू जब फांसी से लटकाया गया तो उसने जीवन के तीस बसंत भी पूरे नहीं किये थे. (Sultana Daku ki Kahani)
सुल्ताना का जन्म कहाँ हुआ इस लेकर कई दावे हैं. उसे मुरादाबाद के हरथला में पैदा हुआ बताया जाता है. अलबत्ता बिलौरी और बिजनौर में उसका जन्म हुआ ऐसा दावा भी है. सुल्ताना की माँ मुरादाबाद के ही कांठ की रहने वाली थी. सुल्ताना भांतू समुदाय से ताल्लुक रखता था. अंग्रेजों ने भांतू लोगों को जरायमपेशा करार कर नजीबाबाद में साल्वेशन आर्मी की निगरानी में नजरबंद कर दिया गया. उनका मानना था कि ऐसा करने से ये समुदाय सुधर जाएगा. सुल्ताना अपनी बीवी, छोटे बच्चे और सैकड़ों अन्य लोगों के साथ इस किले में कैद था.
लेकिन सुलताना किसी और ही मिट्टी का बना था तो उसे कैद में रख पाना मुमकिन नहीं था. एक रोज किले की दीवार फांदकर सुल्ताना फरार हो गया. एक साल के भीतर सुल्ताना ने 100 हथियारबंद लोगों का गिरोह बनाकर डकैतियां डालना शुरू कर दिया. 17 साल की उम्र से डकैतियां डालने वाला सुल्ताना 23 का होते-होते अंग्रेजी हुकूमत के लिए चुनौती बन गया और मुरादाबाद, नजीबाबाद, बिजनौर के गरीबों का हीरो भी. सुल्ताना के सर पर हजारों रुपयों का इनाम था.
लाख कोशिशों के बाद भी जब अंग्रेज उसे पकड़ पाने में नाकाम रहे तो स्पेशल पुलिस फोर्स गठित की गयी. इसके लिए बाकायदा तेजतर्रार पुलिस अफसर फ्रेडी यंग को बुलाया गया. फ्रेडी ने सुल्ताना की पकड़ करने के लिए कई अजाल बिछाए लेकिन हर बार नाकामी हाथ रही. इस नाकामी की वजह थे वो गरीब लोग जो सुल्ताना को हर आहट की खबर दिया करते. फ्रेडी सैंकड़ों लोगों की फोर्स के साथ सुल्ताना के पीछे था और सुल्ताना बेख़ौफ़ उत्तरप्रदेश से लेकर पंजाब तक डकैतियां डाल रहा था.
इसी दौरान जब सुल्ताना कालाढूंगी के पास लामाचौड के प्रधान के घर डकैती डालने पहुंचा तो मार-पीट में मुखिया का नौकर मारा गया. इसके बाद जिम कॉर्बेट भी सुल्ताना को गिरफ्तार करने की मुहीम में फ्रेडी के साथ जुट गए.
कई कोशिशों के बाद जब फ्रेडी नाकाम रहे तो सुल्ताना को मिलने का न्यौता भिजवाया. सुल्ताना ने यह न्यौता इस शर्त के साथ क़ुबूल किया कि फ्रेडी अकेला मिलने आएगा और मुलाकात की जगह, तारीख और वक़्त सुल्ताना मुक़र्रर करेगा. फ्रेडी जब सुल्ताना से मिलने पहुंचा तो पेड़ के पीछे से छोटे से कद का सुल्ताना बाहर आया, उसके हाथ में तरबूज था जिसे वह फ्रेडी को भेंट देने लाया था. सुलताना ने हथियार डालने को लेकर रखी गयी फ्रेडी की शर्तें मंजूर नहीं की और मुलाक़ात बेनतीजा रही. दोबारा सुल्ताना की धरपकड़ की कोशिशें शुरू कर दी गयीं.
आखिरकार अपने आदमियों की मुखबिरी की वजह से सुल्ताना पकड़ा गया. सुल्ताना समेत उसके गिरोह के 13 लोगों को फांसी की सजा दी गयी, कई को उम्र कैद. 7 जुलाई 1924 को सुल्ताना को फांसी पर लटका दिया गया. सुल्ताना की गुजारिश पर उसके कुत्ते ‘राय बहादुर’ और बेटे को फ्रेडी ने पाल लिया. फ्रेडी ने उसके परिवार की पूरी जिम्मेदारी निभाई और उसके बेटे को पढ़ने के लिए इंग्लेंड भेज दिया.
सुल्ताना की परोपकारी छवि ने उसके जीते जी और मरने के बाद भी लोगों के दिलों पर राज किया. उस पर कई किताबें लिखी गयीं, नाटक, नौटंकियां खेली गयीं यहां तक की फ़िल्में भी बनीं. हॉलीवुड तक में सुल्ताना के जीवन पर ‘द लॉन्ग डेविल’ नाम से फिल्म बनी.
सुल्ताना के दुश्मन भी उसके विराट व्यक्तित्व के कायल थे. यही वजह है कि सुल्ताना को गिरफ्तार करवाने में भूमिका अदा करने वाले जिम कॉर्बेट अपनी किताब ‘माइ इंडिया’ के अध्याय–सुल्ताना : इंडियाज रॉबिनहुड में लिखते हैं—
“सुल्ताना एक अपराधी था. उसे अपराधी पाया गया और फांसी चढ़ा दिया गया. चाहे जो भी हो उस छोटे से आदमी के लिये मेरे मन में जो जज्बात हैं उन्हें जाहिर किये बिना मैं नहीं रह सकता — जिसने अपने बूते पर 3 साल तक पुलिस की ताकत को बौना साबित किया. जिसने अपनी बहादुरी से उन व्यक्तियों से भी सम्मान हासिल किया जो जेल की काल कोठरी में उसके पहरेदार थे.
मैं सिर्फ तमन्ना ही कर सकता था कि हथकड़ियों-बेड़ियों में सुल्ताना की नुमाइश लगाने की कानून को जरूरत न पड़े. मेरी दिली ख्वाहिश थी कि वे लोग हथकड़ियों-बेड़ियों में जकड़े सुल्ताना की खिल्ली न उड़ा सकें जो कभी उसके नाम से भी कांपते थे. मैं यह भी कामना ही कर सकता था कि सुल्ताना को सजा देने में नरमी बरती जाये. क्योंकि सुल्ताना पैदा होते ही सुल्ताना के माथे पर अपराधी लिख दिया गया था तथा उसे कुछ और करने का मौका ही नहीं दिया गया. यह भी वजह है कि जब सुल्ताना के नाम का डंका बजता था तब भी उसने किसी गरीब को परेशान नहीं किया. इस वजह से कि बड़ के पेड़ तक उसका पीछा करते मेरे दोस्तों की जान उसने बख्शी. और सबसे अंत में इसलिए कि जब सुल्ताना फ्रेडी से मिलने आया तो उसके हाथ में रिवाल्वर या चाकू नहीं एक तरबूज था.”
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