भारत रत्न, संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर के नाम से एक कुनबे में दहशत है या फिर नफरत। यह बात बार बार रिसकर सामने आती रहती है। देश की वंचित आबादी के हक के लिए जीवन पर लड़े बाबा साहब की मूर्ति, साइन बोर्ड से लेकर देश का संविधान तक इस कुनबे को चुभता रहता है। सामने आकर अपना गुबार निकालने की हिम्मत नहीं, इसलिए चोरी छुपे या रात के अंधेरे में यह गिरोह बाबा साहब की मूर्तियों को नुकसान पहुंचाकर खीज निकालता है। जब सत्ता की ताकत हो तो यह कुनबा सरकारी लाठी, गोली और संगीनों से वार करने में कभी नहीं चूकता। (Bulldozer To Uproot Ambedkar)
– मुश्किल में बहुजन –
- यूपी के रामपुर में अंबेडकर लिखा बोर्ड उखाड़ने पर बवाल
- बोर्ड उखाड़ने को बुलडोजर और फोर्स लेकर पहुंचे अफसर
- विरोध होने पर लाठीचार्ज और फायरिंग से बिगड़ा माहौल
- एससी समुदाय ने लगाया था अंबेडकर पार्क लिखा बोर्ड
- फायरिंग के बीच छात्र की मौत, कई घायल, दर्जनों लहूलुहान
- सरकारी जमीन पर अतिक्रमण की शिकायत पर की कार्रवाई
- हर बात पर बुलडोजर निकाल लाने को लेकर उठ रहे सवाल
- फायरिंग और छात्र की मौत से बहुजन समुदाय में आक्रोश
उत्तरप्रदेश में तो बुलडोजर कीर्तन करने वाला यह कुनबा एक के बाद एक ऐसे हमलों को को अंजाम दे रहा है। रामपुर में 27 फरवरी की शाम बाबा साहब के अनुयायियों पर जिस तरह से सत्ता के मुंहलगे और प्रशासन के अफसर पेश आए, उससे देशभर के बहुजनों में उबाल आ गया है। (Bulldozer To Uproot Ambedkar)
महज किसी जगह बाबा साहब के नाम का बोर्ड लगाने पर पूरा सरकारी फौज फांटा हनक के साथ हरकत में आ गया। विरोध हुआ तो बाबा साहब के अनुयायियों पर फायर झोंक दिए, जिसमें अनुसूचित जाति के किशोर उम्र के छात्र की मौत हो गई। इस वारदात के बाद चार पुलिसकर्मियों समेत 25 लोगों पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है।
वारदात रामपुर जिले के मिलक क्षेत्र में सिलाई बड़ा गांव की है। कुछ मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि एक सरकारी जमीन को लेकर अनुसूचित जाति के लोगों और ओबीसी की कुर्मी जाति के बीच खटास है। एससी समुदाय ने कथित विवादित सरकारी भूमि पर आंबेडकर पार्क लिखा एक बोर्ड लगा दिया तो दूसरे समुदाय ने शिकायत की।
महज इतनी बात पर प्रशासन के अफसर बुलडोजर लेकर बोर्ड उखाड़ने पहुंच गए। महिलाओं ने बोर्ड उखाड़ने का विरोध किया तो पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। जवाब में महिलाओं ने आसपास पड़े पत्थरों और गिट्टी के टुकड़े उठाकर फेंके तो सेफ्टी जैकेट और शील्ड में लैस पुलिसकर्मियों ने भी उनकर पत्थर फेंके और फिर फायरिंग करके खदेड़ना शुरू कर दिया। इस बीच एक गोली वहां मौजूद दसवीं कक्षा के छात्र के जिस्म में आ धंसी और उसकी मौत हो गई, कई लोग घायल हो गए, हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्टों में दो लोगों के घायल होने की सूचना है।
गम और गुस्से के साथ लहूलुहान एससी समुदाय में आक्रोश बढ़ गया तो सरकारी अमला पीछे हटा और किसी तरह क्षेत्र में शांति कायम करने की कोशिशें शुरू हो गईं। लोकसभा चुनाव सिर पर है, इसलिए लखनऊ से भी आदेश निर्देश मिलने लगे। (Bulldozer To Uproot Ambedkar)
इस पूरे मामले को लेकर प्रशासन और पुलिस का रवैया बहुत ही अजीबोगरीब है। अगर जमीन सरकारी कब्जे वाली है भी तो उस पर कोई रिहायशी कब्जा नहीं हो गया था। …जबकि प्रशासन सरकारी भूमि और संपत्तियों पर फिजूल के नेताओं के सेल्फी प्वाइंट बनाने, उनके होर्डिंग लगाने को नाच रहा है।
किसी भी जगह पत्थर या टोंटी को धर्मस्थल बताते ही सुरक्षा बंदोबस्त करने वाले अफसरों को इतना भी इल्म नहीं है कि देशभर में कथित सरकारी भूमि पर ही ज्यादातर अंबेडकर पार्क हैं। क्या वो अंबेडकर को नहीं जानते, जिनकी बदौलत हाकिम बने बैठे हैं और वर्दी कसे हुए हैं? कानून और संविधान की कसम खाकर जनता के नौकर बने ये लोग इतना तो जानते ही होंगे कि बाबा साहब कौन हैं! देश या सूबे के मुखिया भी क्या एक शब्द अपमान का बोलने की हैसियत रखते हैं बाबा साहब के बारे में?
अफसरशाही को बुलडोजर का नशा इस कदर सवार है, कि लगता है जैसे यह पढ़कर लिखकर जिम्मेदार नौकरशाह या कर्मचारी की जगह ‘बुलडोजर के ड्राइवर’ बने घूम रहे हैं और ये किसी को भी मामूली बात पर रौंदने का अधिकार रखते हैं।
आंबेडकर पार्क लिखा बोर्ड लगा होना आखिर कितनी बड़ी चुनौती थी रामपुर के अफसरों के लिए! क्या इसके लिए कोई बातचीत भी मुनासिब नहीं थी! एक बार में बात संभव नहीं थी तो दस बार हो सकती थी। उन्होंने कौन सा मंदिर पर कब्जा करके बौद्ध विहार बना लिया था! (Bulldozer To Uproot Ambedkar)

यहां यह भी जानना जरूरी है कि रामपुर के मौजूदा जिलाधिकारी आईएएस जोगिंदर सिंह हैं, जो इससे पहले बरेली विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष थे और उनके बरेली कार्यकाल में बुलडोजर सही मामलों में ही नहीं, कई जगह बेवजह भी चला। अवैध कॉलोनियों पर बुल्डोजर चलवाने के बीच ही उनके ही कार्यकाल में लंबी चौड़ी अवैध कॉलोनी विकसित होती रही, जहां के रास्ते भी भरपूर चौड़े थे, लेकिन वहां बुलडोजर कभी नहीं पहुंचा, आसपास धूमधड़ाका करके लौट आया।
मामला केवल रामपुर का नहीं है, यह हाल उत्तरप्रदेश में गिनने लगेंगे तो जहां तहां दिखाई देने लगेगा। ऐसे ही बुलडोजर वीर प्रशासन और पुलिस ने सालभर पहले बरेली के सिरौली कस्बे में आंबेडकर मूर्ति को बुलडोजर से उखाड़ा, लाठीचार्ज किया। वहां भी महिलाएं पुलिस के सामने आ गई थीं। उसके बाद बरेली शहर में संजयनगर इलाके में बुद्ध की मूर्ति उखाड़ने को अफसर बुलडोजर लेकर पहुंच गए थे।
बाबा आंबेडकर की मूर्तियों को क्षतिग्रस्त करने की घटनाएं तो जब तब हो रही हैं। दो दिन पहुंले अंबेडकरनगर के बसखारी में महमूदापुर रामदीन गांव में अंबेडकर प्रतिमा क्षतिग्रस्त कर दी, उससे पहले बदायूं, आजमगढ़, कानपुर, हाथरस समेत कई जगहों पर यही हुआ। कुछ गैंग ने दीक्षाभूमि में भी घुसने की कोशिश की थी कुछ दिन पहले, लेकिन उनको भगा दिया गया।
बाबा साहब की मूर्तियों को निशाना बनाकर यह वंचित समाज को मिले अधिकारों पर हमला करके भी इनको हासिल कुछ नहीं हो रहा। इनकी हरकतों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में कुछ अरसे पहले बाबा साहब की मूर्ति लगाई गई। अमेरिका में मैरीलैंड बाबा साहब की मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के नाम से लगाई गई है, जो भारत के बाहर दुनिया बाबा साहब की सबसे बड़ी मूर्ति है। (Bulldozer To Uproot Ambedkar)
भारत में तो बुद्ध के बाद सबसे ज्यादा मूर्तियां उन्हीं की हैं। पार्क भी उनके ही नाम पर हैं सबसे ज्यादा। अफसरशाही को बुलडोजर से उतरकर संविधान पढ़ने की जरूरत है। ऐसा कोई बुलडोजर अब तक नहीं बना है, जो संविधान के अनुच्छेदों को उखाड़ दे। संविधान ही है, जिसके बल पर लाठीचार्ज और फायरिंग करने वाले सरकारी अमले के खिलाफ सरकारी सिस्टम को मुकदमा लिखना पड़ा और आगे भी उन्हें संविधान का ही सामना करना पड़ेगा, बुलडोजर उनकी कोई रक्षा नहीं कर पाएगा।
(यह लेख इंडस न्यूज टीवी के कार्यकारी संपादक आशीष आनंद की रामपुर केस पर विस्तृत संपादकीय टिप्पणी है)
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