के विक्रम राव
हिजाब पर सेक्युलर भारत का सुप्रीम कोर्ट कुछ भी कहता रहे, इस्लामी ईरान के फुटबॉलरों ने कल (21 नवंबर 2022) दुनिया को दिखा दिया कि आजादी का तकाजा मजहब संकुचित नही कर सकता है। विश्व कप मैच में ईरान के खिलाड़ी राष्ट्रगान पर खामोश रहे। शेख तमीर बिन अहमद-शासित कतर की राजधानी दोहा के खलीफा स्टेडियम में इन ईरानी देशभक्तों ने दो हजार किलोमीटर दूर तेहरान में अपनी मां-बहनों को हिजाबी दासता से मुक्ति के लिए आवाज बुलंद की। मौन रह कर राष्ट्रगान नहीं गाया गया। (Wonder of rebel footballers)
संगीतकार हसन रियादी द्वारा लयबद्ध यह राष्ट्रगान अयातोल्लाह खुमैनी की स्तुति में है। उनका विरोध है हिजाब, निकाब, बुर्का जो सभी अनिवार्य है। पहलवी रज़ा शाह के राज मे नहीं था। कहावत कभी थी कि पर्शियन रमणी के चेहरे को देखकर पूनम का चाँद भी शरमा जाता हैं। अब नहीं राष्ट्रगान “सोरुदे मेल्लिये जंहरियाये इस्लामीये ईरान” का एक अल्फाज तक इन खिलाड़ियों ने नहीं गुनगुनाया। स्टेडियम की गेलरियों से कई दर्शक परचम लहरा रहे थे, “ईरान की आजादी, ईरानी महिलाओं की स्वाधीनता।”
इस राष्ट्रगान की एक खास पंक्ति है: “तुम्हारा संदेश हे ईमाम (अयातुल्ला खुमैनी) : “स्वतंत्रता और मुक्ति, हमारे जीने का उद्देश्य है, हमारी आत्माओं पर अंकित है।” मगर आज ईरान में दमन हो रहा है। अब कई गुना बढ़ गया है। यह आजादी का जज्बा ज्यादा तीव्र हुआ है। कल इंग्लैंड के खिलाफ मैच में ईरान में चल रहे जनांदोलन के समर्थन में खिलाड़ियों ने राष्ट्रगान गाने से जब इनकार कर दिया तो कप्तान अलीरजा जहांबख्श जिरन्देह ने कहा कि “हम सब हिजाब-विरोधी संघर्ष के समर्थक हैं।” ईरान के महानतम फुटबालर अली देयी खुद कतर नहीं गये।
संघर्षशील साथियों के समर्थन में। इंग्लैंड से ईरान चार गोल से हारा। जानबूझकर यह भी प्रतिरोध का एक परिचायक था। हालांकि लोकतन्त्र के प्रेमियों को ताज्जुब हुआ जब सब के बाद भी इंग्लैंड टीम ने अपना राष्ट्रगान गाया “ईश्वर बादशाह को सलामत रखे।” हमदर्दी में टाल सकते थे, आवाज धीमी या मंद हो सकती थी। उनका ईरान की जनता से ढकोसला किया कि ब्रिटेन मानवाधिकार के पैरोकार हैं। ईरान का तेल उनकी महारानी की हुकूमत और वित्त को बचाता रहता था। हालांकि ये साम्राज्यवादी शोषक ही रहे। (Wonder of rebel footballers)
मशहूर ईरानी फुटबॉलर एहसान हजरुकी और ईरानी टीम के पुर्तगाली कोच कालोर्स मेनुअल क्वेरोज ने कहा: “खिलाड़ियों के इस प्रतिरोध-प्रदर्शन का हमदर्द हैं।” स्टेडियम के सामने वाला मेट्रो स्टेशन झंडो से अच्छादित था। उन पर लिखा था: “ईरान को न्याय मिले। ईरान आजादी पाये।” दर्शक बहमान अहमदी ने कहा : “हम दुनिया को यह सच जताना चाहते हैं।” खिलाड़ी सरदार अजमाउन ने निर्भीक होकर स्पष्ट कहा: “डर कैसा ? क्या होगा” ? राष्ट्रीय टीम से निष्कासित ही करेंगे। यह बहुत ही छोटी कीमत होगी। ईरानी युवतियों के बालों का एक रेशे की तुलना में। ईरानी नारी-मुक्ति जिंदाबाद।” मेहंदी तोराबी ने इंग्लैंड पर दो गोल ठोके। पर हर्ष व्यक्त करने से इंकार कर दिया।
ईरान के ग्यारहों खिलाड़ियों ने राष्ट्रगान नहीं गाया। भूलोक के करोड़ो अरवों टीवी-रेडियो के दर्शकों और नेताओं को बता दिया कि ईरान मे महिलाओं के साथ पशु सरीखा व्यवहार रहा हैं। “हिजाब और बुर्का लादा जाता है।” अर्थात विश्वभर की मीडिया साल भर से जो नहीं कर पायी (जबसे यह हिजाब-विरोधी जनसंघर्ष चला है) एक टीम ने कर दिखाया। इस विरोध प्रदर्शन से सोलह-वर्षीया निका शकरमी और सरीजा इसमाइलजादी की आत्मायें खुश हो रही होगी। इन दोनों को ही ईरानी तानाशाह, अतिवादी राष्ट्रपति इब्राहिम राइसी के फ़ौजियों ने गोलियों से भून डाला था। वे अपनी बहनों को हिजाब से मुक्ति के लड़ाई मे शहीद हुईं। (Wonder of rebel footballers)
उधर दूर दक्षिण कोरिया की राजधानी सिओल में ईरानी एथिलीट एलनाज रेकवी गत प्रतियोगिता मे क्लाइंबिग भी प्रथम आई। बिना हिजाब पहने। इस संघर्ष पर बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा बोली: “ईरानी महिलाओं की चुप्पी ज्वालामुखी जैसी है। फाड़कर, फोड़कर दम लेंगी।” बाइस-वर्षीया बिना हिजाब वाली युवती शहीद मसीहा अलीनेजाद की सबको याद रही। ईरानी पुलिस ने थाने मे बंदकर, पीटा और मार डाला। उसने हिजाब फाड़ डाला था। अब चंद सवाल लड़ाकू भारतीय महिलाओं से। ईरानी संघर्षशील युवतियों के समर्थन में एक भी प्रदर्शन कहीं भी नहीं आयोजित हुआ। मुस्लिम वोट के आतंक से भारत में कोई भी विरोध प्रदर्शन तक नहीं हुआ।
जनवादी महिलाएं भी साजिशभरी खामोशी बनाए रही। वामपंथ प्रगतिशीलता की तेजतर्रारी दकियानूसी हिजाब तले दब गई ! फुटबॉल द्वारा असहमति तथा विरोध व्यक्त करने के सिलसिले में एक विवाद को याद दिला दूँ। राष्ट्रपति के पिछले निर्वाचन पर ईरान में मसला उठा था कि क्या केवल पुरुष ही उम्मीदवार होंगे? महिलाएं प्रत्याशी क्या नहीं हो सकती? तब (मई 1997) श्रीमती आजम तलकानी प्रथम प्रत्याशी बनी थी। उनके चुनावी प्रचार करने की राह में पहाड़ सी मुश्किलें आई थी। इसकी खबर दैनिक “ईरान न्यूज़” ने छापी थी। (Wonder of rebel footballers)
तलकानी बोली: “मैं चाहती हूं कि संविधान के अनुच्छेद 115 को स्पष्ट किया जाए। यह बताया जाए कि कोई महिला ईरान के राष्ट्रपति हो सकती है या नहीं ? अनुच्छेद 115 के अनुसार राष्ट्रपति को ईरानी, मुस्लिम और “रेजाल” अथवा जानी-मानी हस्ती होना चाहिए। आम धारणा के अनुसार यह अनुच्छेद फिर पुरुषों को राष्ट्रपति बनने की इजाजत देता है महिलाओं को नहीं।“ सुश्री तलकानी ने कहा कि: “ईरान की आधिकारिक भाषा फारसी है। फारसी में “रेजाल” शब्द का इस्तेमाल पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए किया जाता है।
कुरान में इस शब्द का इस्तेमाल 15 बार पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए किया गया है।” मगर राष्ट्रपति अकबर हाशमी रसफनजानी ने कह दिया था: “महिलाएं राष्ट्रपति पद के योग्य नहीं हैं।” अब कतर की घटना के बाद तेहरान में विद्रोह की लहर तेज होगी। जलजला आने के पूर्व सुधार होना चाहिए। वर्ना कवि इकबाल की पंक्ति याद करें: “यूनान रोम मिट गये थे” कब तक ईरान नहीं बदलेगा ? (Wonder of rebel footballers)