इसी सप्ताह की बात है, सातवीं क्लास में पढ़ रही बेटी ने कहा, पापा स्पोर्ट वाले सर ने मुझे हैंडबॉल में सेलेक्ट किया है, रोजाना स्टेडियम में प्रैक्टिस होगी और बाद में लखनऊ रीजन के टूर्नामेंट में पार्टिसिपेट करना है। मैंने कहा ठीक है, लेकिन हैंडबॉल खिलाड़ी लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न की कुछ घटनाएं दिमाग में घूम गईं। दो तीन दिन ही बीते कि दिल्ली जंतर मंतर पर देश का नाम रोशन करने वाली रेसलर लड़कियों के धरने की खबर आ गई। (Wrestlers Protest)
उनकी महज इतनी ही इल्तिजा रही कि यौन उत्पीड़न के आरोपी कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर एफआईआर दर्ज की जाए। इस गुजारिश के लिए तब धरना देना पड़ा उन्हें, जब खेलमंत्री और कई दूसरे जिम्मेदार लोग दिए गए जांच का आश्वासन पूरा नहीं कर पाए।
आखिकार सुप्रीम कोर्ट के दखल पर 28 अप्रैल को एफआईआर दर्ज हो पाई और पुलिस उन सबको जंतर मंतर से भगाने की कोशिश में जुटी है। एफआईआर के बाद भी कुछ हो पाएगा, इसमें अभी से संदेह नजर आ रहा है।
ये सब देखकर कौन माता पिता अपनी बेटियों को खेलकूद के क्षेत्र में भेजने की सोचेंगे? जब एशियाई खेलों और ओलंपिक तक देश का गौरव बढ़ाने वाली बेटियों को सड़क पर बैठाकर लज्जित किया जा रहा हो। अभी तक गनीमत यही है कि स्टार रेसलर्स को देशद्रोही का दर्जा नहीं मिला है।
रेसलर्स के धरने को लेकर कुछ बातें समझना जरूरी हैं। सबसे पहले धरना देने वालों के सामान्य रिकॉर्ड के बारे में।
विनेश फोगाट– एशियाई खेलों में गोल्ड लाने वाली देश की पहली महिला पहलवान हैं। इसके अलावा वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली महिला पहलवान रही हैं।

साक्षी मलिक– रियो ओलंपिक में कांस्य पदक लाने वाली पहली महिला पहलवान हैं।
महिला खिलाड़ियों की अस्मिता की रक्षा के आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले बजरंग पुनिया एशियन खेलों में गोल्ड मैडल लाने वाले खिलाड़ी हैं। इन रेसलर्स के दर्जनों रिकॉर्ड आप इंटरनेट पर जान सकते हैं। इनके अलावा दर्जनों नए पुराने रेसलर भी धरने के सपोर्ट में हैं। (Wrestlers Protest)
सोचने की बात है, क्या अपना कॅरियर दांव पर लगाकर ये पहलवान खिलाड़ी किसी शौक या बहकावे में आकर ये सब कर रहे हैं?
क्या उस धारा का कोई मतलब नहीं रहा, जिसमें यौन उत्पीड़न या दुष्कर्म की शिकायत पर तत्काल एफआईआर दर्ज न करने पर संबंधित थानेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को कहा गया है?
आखिर क्या वजह है कि एक कानून का पालन करने या कराने में जिम्मेदार अधिकारी, मंत्री, सरकार, सब पीछे हट रहे हैं?
अब आते हैं आरोपी भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के प्रोफाइल पर।
विकीपीडिया पर दर्ज जानकारी के मुताबिक, इस वक्त उनकी लगभग 66 साल उम्र है। छठी बार देश की सरकार चला रही भाजपा के सांसद हैं। एक बार भाजपा ने कुछ समय के लिए पार्टी से निकाल दिया था तो 1991 में समाजवादी पार्टी से जुड़ गए थे।
मार्च 2023 तक उनके खिलाफ 40 एफआईआर दर्ज हुईं, जो कि डकैती, मारपीट, अवैध रूप से हथियार रखने से लेकर हत्या के प्रयास से संबंधित हैं। 2022 में लल्लन टॉप के इंटरव्यू में वो अपने हाथों हत्या की बात भी स्वीकार चुके हैं। यही नहीं 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस में भी शामिल रहे, इस वजह से सीबीआई ने जब 40 लोगों को गिरफ्तार किया तो उसमें शीर्ष अभियुक्त बने। हालांकि, बाद में 2020 में सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिल गई। बाबरी मस्जिद केस के दरम्यान बृजभूषण को दाऊद इब्राहीम गैंग के कराए जेजे अस्पताल गोलीकांड में मदद देने के आरोप में टाडा के तहत आरोपी बनाया गया। इस कांड में दाऊद के बहनोई की हत्या करने वाले शूटर्स को मार दिया गया था। इस केस से भी उनको 1999 में बरी कर दिया गया। (Wrestlers Protest)
फिलहाल, लंबे अरसे से भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष हैं।
https://twitter.com/RoflGandhi_/status/1652586338292731906?s=20
एक बार इंडियन एक्सप्रेस के इंटरव्यू में बृजभूषण ने कहा, पहलवान ताकतवर लड़के लड़कियां हैं, उनको कंट्रोल करने के लिए मजबूत आदमी की जरूरत होती है, क्या मुझसे ज्यादा ताकतवर कोई है यहां।
2021 की जनवरी में उन्होंने जूनियर कुश्ती टूर्नामेंट के दरम्यान एक पहलवान खिलाड़ी को मंच पर ही थप्पड़ जड़ दिया, जो कैमरे में भी कैद हो गया।
उत्तरप्रदेश के गोंडा से भाजपा के छठी बार सांसद बृजभूषण शरण सिंह की यह बात तो ठीक ही है कि वो ताकतवर हैं और उनकी पहुंच भी काफी है। उनका रिकॉर्ड बताता है कि उनकी पहुंच कहां तक हो सकती है।
कुछ ऐसा ही रिकॉर्ड अतीक अहमद का भी था। पांच बार विधायक और एक बार सांसद और बैकग्राउंड में अपराध की कुंडली। इसी तरह अपराध की दुनिया में चर्चित नाम मुख्तार अंसारी भी पांच बार विधायक रहे हैं।
अफसोस की बात ये है कि ऐसे ही लोग हमारे देश में माननीय विधायक जी और माननीय सांसद जी कहलाते हैं।
जो अतीक अहमद 17 साल की उम्र में पहली हत्या कर चुका था और फिर कुख्यात गैंग बनाकर दहशत का साम्राज्य खड़ा कर चुका था, दर्जनों मुकदमे दर्ज हो चुके थे, वह आराम से सियासत के महल में दाखिल हो गया, जहां उसका बांहें खोलकर स्वागत किया गया, विधायक बन गया, वह भी सिर्फ एक बार नहीं, पांच बार। इसके बाद सांसद भी बन गया। वह संसद, जहां से देश चलाया जाता है।
बृजभूषण शरण सिंह भी लगातार सांसद हैं। वो यह तक कह चुके हैं कि उन्हें पार्टियों की जरूरत नहीं, पार्टियों को उनकी जरूरत है। (Wrestlers Protest)
सबको याद होगा, अतीक अहमद की हत्या के वक्त मेनस्ट्रीम मीडिया में शोर रहा कि बिना राजनीतिक संरक्षण के माफिया इस मुकाम पर नहीं पहुंच सकता। यह बात 16 आने सच है।
हमारी संसद-विधानसभाओं में 80 प्रतिशत ऐसे ही लोग हैं। यह भी सच है कि हम सब ही इन्हें पसंद करते हैं। पसंद नहीं होते तो पार्टियां ऐसे लोगों को टिकट क्यों देतीं? चुनाव आयोग उनको इलेक्शन लड़ने की अनुमति कैसे दे देता? ऐसे लोगों को ही हमें अपना नेता चुनने में ज्यादा दिलचस्पी है।
जो अपराधी कानून से भागते रहे हों, बाद में पुलिस उनकी आरती उतारती है। कानून को तोड़ने वाले अपराधी बड़ी आसानी से मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, प्रधानमंत्री, कुछ भी बन सकते हैं, यही हमारी चुनावी व्यवस्था और मानसिकता का नतीजा है।
इसका ठोस सबूत भी है। 2019 में बाकायदा यह बात सर्वे से निकलकर आई, कि जिन उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होना घोषित किया, उनके जीतने के चांस 15.5 प्रतिशत ज्यादा थे, जबकि जिन पर ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं था, उनके जीतने के चांस मात्र 4.7 प्रतिशत थे।
यह सर्वे जनता के बीच ही हुआ और उन्होंने अपने मनपसंद उम्मीदवार के बारे में यह रुझान दिया, यानी अपराधी किस्म के उम्मीदवारों से ही ज्यादा उम्मीद लगाई। (Wrestlers Protest)
इसका नतीजा क्या हुआ? यह भी जान लीजिए।
रिपोर्टें बताती हैं- 2019 के लोकसभा चुनाव में सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी के कुल उम्मीदवारों में 39 प्रतिशत यानी 303 में 118 से ज्यादा ऐसे लोग सांसद बने, जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे।
ऐसे ही कांग्रेस के जीतने वाले उम्मीदवारों में 57 प्रतिशत यानी 53 में से 30 से ज्यादा सांसद, द्रविड़ मुनेत्र कजगम के सांसदों में 43 प्रतिशत यानी 24 में से 10 से ज्यादा और ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के 41 प्रतिशत यानी 23 में से 9 से ज्यादा अपराधी।
बाकी दल भी हैसियत के हिसाब से अपराधी सांसद चुनवाकर खुश हो गए। कुल मिलाकर 200 के आसपास अपराधी देश चलाने को हाजिर हो गए संसद में।
ऐसे लोगों का मीडिया में बाहुबलि लिखकर बोलकर गुणगान किया जाता है, जैसे ये कोई सम्मानजनक पदवी हो। असल में यह सिर्फ संकेत होता है आम लोगों के लिए कि ऐसे नेता कुछ भी कर सकते हैं, इनके आगे कोई नहीं टिकता, ये खूंख्वार हैं।
ऐसे लोग जब सांसद जी, विधायक जी, मंत्री जी हों तो जज भी फैसला करने से पहले संविधान और कानून से ज्यादा उन माननीयों के रिकॉर्ड पर गौर फरमाते हैं। (Wrestlers Protest)
संविधान लिखने वाले बाबा साहेब आंबेडकर को भी इसका अंदाजा था शायद, इसीलिए उन्होंने कहा था कि जिस तरह की चुनावी व्यवस्था बनाई जा रही है, उसमें दलाल और भड़वे पैदा होंगे। लेकिन आज? बात इससे कहीं आगे निकल गई है। दलाल, भड़वे ही नहीं, बलात्कारी, दंगाई, हत्यारों, आतंकियों के हाथ में हमारे बच्चों भविष्य है।
पक्ष-विपक्ष में अपराधियों की संख्या का ही अंतर है केवल।
कोई माने या न माने, सच यही है कि कहीं अतीक अहमद नहीं मरा है….वो संसद विधानसभाओं में….ज़िंदा है….
कल्पना करके देखिए, इतने सारे अपराधी संसद में बैठकर हमारे आपके लिए सुख शांति की योजनाएं बनाते होंगे? या अपने फायदे के लिए हत्या, कब्जा, तस्करी, दुष्कर्म, डकैती की?
दिमाग पर थोड़ा जोर डालिए, आपकी नजर में अतीक अहमद या बृजभूषण सिंह पॉलीटिशियन हैं या क्रिमिनल?
आप ऐसे सांसदों-विधायकों-मंत्रियों से क्या उम्मीद आप कर सकते हैं? सिर्फ ये कि आप उनके चरणों में गिरकर अपना सब कुछ समर्पित कर दें, घर, परिवार, बीवी, बच्चे, संपत्ति, सम्मान…सबकुछ, और बदले में किसी मामूली दुश्मन का नुकसान करवा दें। दुश्मन भी ऐसे ही किसी नेता के पास जाकर आपको ठिकाने लगवा सकता है, क्योंकि ऐसे नेताओं की ही भरमार है।
अरे भाई, पांच वक्त के नमाजी होने और माथे पर तिलक लगाने से वो साधु फकीर नहीं हो गए हैं।
विधायक जी, सांसद जी जिन्हें कहते फिरते हैं हम सब, वो असल में डाकू जी, हत्यारे जी, बलात्कारी जी, दलाल जी, मक्कार जी, दंगाई जी कहे जा सकते हैं। (Wrestlers Protest)
पिछले दिनों जिन तीन लड़कों ने कथित माफिया पूर्व विधायक-पूर्व सांसद अतीक अहमद को मार डाला, वो अभी जेल से आकर अपने शहर में नगरपालिका-नगर निगम का चुनाव लड़ लें तो उन्हें चेयरमैन-मेयर चुन लिया जाएगा। प्रयागराज में तो उनमें से कोई भी चुनाव जीत जाएगा।
हो सकता है इन बातों से आप सहमत न हों। सहमति अनिवार्य भी नहीं है। संविधान से मिले अभिव्यक्ति के अधिकार से हमने अपनी बात रखी है। हमारी नजर में ये मुद्दा किसी दल या धर्म का मसला नहीं है। देश-प्रदेश और हमारे बच्चों का भविष्य किस तरह के लोगों के हाथ में हैं, यह सोचने का सवाल है।
सवाल तो ये भी है कि देश के लिए ‘गोल्ड’ लाने वाली बेटियां और खिलाड़ी जब इंसाफ मांग रहे हैं, उस वक्त देश प्रमुख राजनीतिक दलों के नेता कर्नाटक में वोट मांग रहे हैं, हो सकता है वो एक बार फिर कुछ अपराधियों के लिए वोट मांग रहे हों।
(आशीष आनंद Indus News 24×7 के कार्यकारी संपादक हैं।)